स्वर्गलोक में पारदर्शिता
डॉ. अशोक गौतम
स्वर्गलोक की सरकारी नौकरियों के चयन में जब भाई-भतीजावाद की बू से भी बदबू आने लगी तो विरोधी देव धड़े का मन रखने के लिए स्वर्गाधिपति ने सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता बनाए रखने के ग़ैर इरादत इरादे से पारदर्शी कर्मचारी चयन आयोग की स्थापना करने की सोची। दिमाग़ में यह शौच आते ही उन्होंने जंबूद्वीप की सरकार से हॉट लाइन पर आग्रह किया कि वे आपकी तरह सरकारी नौकरियों में अपनों को प्राथमिकता देने के इरादे से कर्मचारी चयन आयोग की स्थापना करना चाहते हैं ताकि दूसरे तरीक़े से सरकारी नौकरियों के चयन में पारदर्शिता बनी रहे।
स्वर्गाधिपति का अनुरोध पाते ही जंबूद्वीप की सरकार ने तत्काल स्वर्गाधिपति के विनम्र आग्रह पर कड़ा संज्ञान लेते हुए अपने यहाँ के सबसे मशहूर पारदर्शी कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष को तत्काल आदेश दिया कि वे इसी वक़्त स्वर्गलोक जाएँ और वहाँ पर नौकरियों में अपार पारदर्शिता लाने के इरादे से कर्मचारी चयन आयोग की स्थापना करने हेतु स्वर्गलोक की सरकार को सहयोग करें।
सरकार का आदेश पाते ही जंबूद्वीप के सबसे मशहूर पारदर्शी कर्मचारी चयन के आयोग के अध्यक्ष विद टीटीए स्वर्गलोक को कूच कर गए। जैसे ही वे स्वर्गलोक में पहुँचे तो मानव संसाधन मंत्रालय स्वतंत्र प्रभार के परतंत्र मंत्री ने उनका एयरपोर्ट पर अप्सराओं साहित स्वागत किया। ये देख वे फूले न समाए।
उन्हें वहाँ सरकारी गेस्ट का दर्जा देकर सात सितारा होटल में रखा गया। सात सितारा होटल में आराम फ़रमाने के बाद वे जिस मक़सद से स्वर्गलोक की सरकार द्वारा बुलाए थे, उस उद्देश्य को लेकर स्वर्गाधिपति से मिले। स्वर्गाधिपति को उनके आने से पहले ही उनकी विशेषज्ञता को लेकर जंबूद्वीप की सरकार ने सारी जानकारी मेल कर दी थी।
तब चाय पीते हुए बातों ही बातों में स्वार्गधिपति ने कर्मचारी चयन आयोग की स्थापना के लिए भेजे जंबूद्वीप के कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष से कहा, “बंधु! आप तो जानते ही हैं कि आजकल भाई-भतीजावाद कहाँ नहीं? सच पूछो तो श्मशानघाट तक पर भाई-भतीजावाद फल-फूल रहा है। जिस लोक में भी देख लो वहाँ कुछ हो या न हो, सरकारी नौकरियों में लाख पारदर्शिता बरतने के बाद भी भाई-भतीजा मन फिसला ही देता है। भाई-भतीजों को देख कठोर से कठोर मन पसीज ही जाता है। जब भाई-भतीजे हैं तो भाई-भतीजावाद भी होगा ही न! इसलिए अब हम भी चाहते हैं कि क्यों न तुम्हारे द्वीप की तरह अपने यहाँ भी कर्मचारी चयन आयोग ही हमारे भाई-भतीजावाद के पूर्वाग्रहों में सलिंप्त होते हुए भी मुक्त भाव से सब कर्मचारियों की नियुक्तियाँ करें ताकि हमारी बदनामी भी न हो और काम भी होता रहे। बस इसके लिए . . .”
“सब हो जाएगा जनाब! आप चिंता न करें। अब हम आ गए हैं न!” स्वर्गाधिपति उनका आत्मविश्वास देख ख़ुशी से पसीना पसीना हुए।
“तो इसके लिए आपकी राय में क्या-क्या करना उचित होगा?”
“करना क्या है सर! सबसे पहले तो कर्मचारी चयन आयोग में अध्यक्ष पद के लिए विज्ञापन दीजिए।”
“फिर?”
“तब उस पद के लिए आए आवेदनों में से पारदर्शिता! पारदर्शिता! का जाप करते अपना बंदा अध्यक्ष पद के लिए चुनवा लीजिए। तब क्या मजाल आप पर कोई कटी उँगली भी उठे।”
“फिर?”
“फिर चयन आयोग के लिए सदस्यों के पद हेतु आवेदन आमंत्रित कीजिए।”
“फिर?”
“फिर पहले की ही तरह पारदर्शिता बरतते हुए समस्त आवेदकों में से फुल पारदर्शिता की दुहाई देते उनमें से अपने भाई-भतीजे सदस्यों का कर्मचारी चयन आयोग के सदस्य के रूप में चयन करवा लीजिए। तब क्या मजाल आप पर कोई कटी उँगली भी उठे।”
“फिर?”
“फिर जिन-जिन पदों पर आपको अपनों की नियुक्तियाँ करनी हों उन पदों का विज्ञापन देते रहिए।”
“फिर?”
“फिर उन पदों को भरने के लिए साक्षात्कार लेने हेतु चयन में पारदर्शिता लाने के लिए अपने विशेषज्ञों को लगाइए।”
“फिर?”
“फिर उनसे अपने उम्मीदवारों की लिस्ट अपने ऑफ़िस में मन माफ़िक बनवाइए। तब क्या मजाल आप पर कोई कटी उँगली भी उठे।”
“फिर?”
“फिर क्या! अपनों को मज़े से नियुक्ति पत्र देते रहिए।”
“पर मीडिया ने हल्ला मचाया तो?”
“आपसे बाहर आपका मीडिया है तो लानत है आप पर! जिसकी सत्ता होती है हे स्वर्गाधिपति, मीडिया उसीका बाँदी होता है। ऐसा होने पर आप अपने भाई-भतीजों को ही सरकारी सेवा में फिर भी चयन में पारदर्शिता बरतते हुए नियुक्त करवाते रहेंगे,” स्वर्गाधिपति ने उनसे सरकारी नियुक्तियों के चयन में पारदर्शिता की नई तकनीक प्राप्त कर उन्हें अपने स्वर्गलोक के कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष के पद पर तब तक बने रहने का आग्रह किया जब तक स्वर्गलोक के कर्मचारी चयन आयोग में किसी नियमित अध्यक्ष की नियुक्त नहीं हो जाती। और आपको यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता होगी कि इसे उन्होंने अपना अहोभाग्य कह स्वीकार भी कर लिया।
आजकल वे स्वगलोक के कर्मचारी चयन आयोग में पूरी पारदर्शिता से सरकारी नियुक्तियाँ कर रहे हैं।
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