फोटुओं और कार्यक्रमों का रिश्ता
डॉ. अशोक गौतमहमारे बड़े भाग कि पहली बार हमारे मुहल्ले में स्वच्छता अभियान का शुभारंभ मंत्री जी के कर कमलों से हुआ। इससे पहले तो हम जैसे कूड़े के ढेरों पर ही सोते थे। कूड़े के ढेरों पर ही उठते-बैठते थे, कूड़े के ढेरों पर ही बैठ खाते-पीते थे।
ज़िला प्रशासन ने इस सरकारी स्वच्छता अभियान में भाग लेने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के क़द के हिसाब से झाड़ू किराया हाउस से झाड़ू किराए पर लाए थे। एक घंटे के लिए। पाँच सौ रूपए पर झाड़ू के हिसाब से।
सरकारी अमले में जो अफ़सर नहीं हैं, अफ़सरों से भी अधिक बने अफ़सर, असली अफ़सरों से भी अधिक सज-धज मंत्री जी के लेट होने पर मन ही मन गालियाँ देते इंतज़ार कर रहे हैं। अपने दोनों कानों से दो-दो मोबाइल सटाए; जलते-भुनते वे कभी अपनी कलाई पर बँधी घड़ी को तो कभी कूड़े के ढेर पर बिखेरे फूलों को बार-बार ऐसे घूर रहे हैं जैसे.... पर मंत्री जी को सही समय पर आने के लिए कौन कह सकता है? या कि वह मंत्री जी ही क्या जो दिए समय पर कार्यक्रम में पहुँच जाएँ। असल में मंत्री जी के क़द का पता उनके किसी प्रोग्राम में लेट आने से ही चलता है। जो जितना लेट आए वह उतना ही बड़ा मंत्री।
अचानक मंत्री जी के क़ाफ़िले के आगे चलने वाली पुलिस विभाग की गाड़ी के साइरन की आवाज़ सुनाई दी तो ऊँघते-पूँघते सरकारी अफ़सर हरकत में आए। सब यों हड़बड़ाए से ज्यों कर्फ़्यू लग गया हो। बाबूलाल की गिरती दीवार के सहारे खड़े किए झाड़ू मंत्री जी की गाड़ी का सायरन सुनते ही लहलहा उठे।
ज्यों ही उनकी गाड़ी मुहल्ले के हड़काए कुत्तों से खाली कराई जगह पर रुकी कि सभी अफ़सरों ने अपने-अपने विभागीय बजट के हिसाब से उनके गले में फूलों की मालाएँ डालीं। उसके बाद अपने-अपने क़द के झाड़ू बाबूलाल की दीवार के पास से उठा शान से अपने-अपने कंधे पर दे मारे। उनके मन में स्वच्छता अभियान के प्रति इतनी ललक देख मंत्री जी गदगद हुए। उन्हें लगा कि अबके यह अभियान कुछ करके ही दम लेगा। अब उनके अभियान को कोई नहीं रोक सकता। वे अब तीनों लोकों की गंदगी साफ़ करके ही रहेंगे।
ज्यों ही मंत्री जी ने विशेष रूप से अपने लिए लाए फूलों की मालाओं से सजे झाड़ू को हाथ लगाया कि पूरा मुहल्ला मंत्री जी के नारों से गूँज उठा। लंच के झाँसे में आए प्रेस वालों ने अपने कैमरे सँभाले। एकाएक डीसी साहब ने बिन एक पल गवाए मंत्री जी के हाथों में सिर झुकाए मुस्कुराते हुए सजा-सँवरा झाड़ू थमाया तो मंत्री जी ने बिन एक पल गवाए डीसी साहब की सहायता से झाड़ू पहले तो हवा में लहराया और फिर कार्यक्रम विशेष के लिए दूसरे मुहल्ले से लाए कूड़े के ढेर के पास अकड़ कर अकेले की झाड़ू लिए यों खड़े हो गए ज्यों वह कूड़े का ढेर न होकर विपक्ष का क़ाफ़िला हो। उनके कूड़े के ढेर के पास मूँछों पर ताव देते खड़े होते ही उनके सरकारी वफ़ादारों ने कूड़े के ढेर के पास एक दूसरे को कुचलते हुए यों अपने-अपने हाथ मे झाड़ू ले पोजीशन ली मानों वे कूड़े के ढेर के पास न होकर पीओके की सीमा पर खड़े हों, छाती फुलाए।
तभी नेता जी को फूलों से ढके कूड़े में से भी ईमानदारी के सड़े की सी बू आई तो उन्होंने अपने ख़ास की ओर घूरते देखा भर ही कि उसने अपनी सदरी की जेब से इत्र निकाला और फूलों से ढके कूड़े के ढेर पर एक हाथ से अपना नाक पकड़े दूसरे हाथ से छिड़का तो ज़िला के डीसी परेशान हो उठे।
"कहाँ है कूड़ा? अब हम उसे सीमा पार ही खदेड़ कर दम लेंगे?"
"ये रहा सर! ये कूड़ा बहुत बुरा होता है सर! हवा को भी साँस नहीं लेने देता। इसे आप जैसे ही ख़त्म कर सकते हैं सर। पिछली सरकार ने इस देश में इतना कूड़ा पाया है कि...."
"अब हम आ गए है न! पिछली सरकार के कूड़े की ऐसी-तैसी न घुमा दी तो हमारा नाम भी.....," स्वास्थ्य विभाग के एसडीओ ने सादर फूलों से लकदक कूड़े के ढेर की ओर संकेत किया तो मंत्री जी का जोश सातवें आसमान पर। फूलों के नीचे ढके कूड़े के ढेर को वे ऐसे घूरे जैसे उन्होंने अपने धुर विरोधी को देख लिया हो। मंत्री जी के झाड़ू ने एक पल बिन गवाए मुस्कुराते हुए कूड़े के ढेर का कोमल सा स्पर्श किया भर कि सभी विभागों के कमीशन पर हायर किये कैमरे चमाचम चमकने लगे मानों मुहल्ले में बिन बादलों के ही बिजलियाँ चमक उठी हों। । मुहल्ला तालियों की गड़गड़हट से यों गूँज उठा ज्यों बादल गरज रहे हों। सरकारी अमले की तालियों का शोर सुन बचे-खुचे पेड़ों पर आराम करते पक्षी डर कर दूसरे मुहल्ले में जा पहुँचे।
देखते ही देखते मंत्री जी के साथ कंधे पर झाड़ू उठाए फोटो खिचवाने का दौर धक्का-मुक्की के साथ शुरू हुआ तो शांति बनाए रखने के लिए पुलिस वालों को शर्म के मारे मोर्चा सँभालना पड़ा। हर कोई अपने कंधे पर झाड़ू रखे मंत्री जी के साथ फोटो लेने को बेताब। मंत्री जी ने भी दरियादिली दिखाते हुए सभी के साथ बिन किसी ऊँच-नीच के कभी झाड़ू हाथ में तो कभी झाड़ू कंधे पर रख फोटो खिचवाए। मंत्री जी के साथ फोटो खिचवा हर झाड़ू गदगद हुआ। काव्यमयी भाषा में कहें तो झाड़ुओं का रोम-रोम मंत्री जी के सान्निध्य में पुलकित हो रहा था। मंत्री जी को ख़ुश देख सारे विभाग निहाल हुए। आज के इस धाँसू कार्यक्रम की सफलता पर वे अपनी पीठ अपने आप ही थपथपाते कंधे पर झाड़ू लिए अपने को शाबाशी देने में जुट गए।
मंत्री जी ने झाड़ू हाथ में लिए ही टीवी वालों को इंटरव्यू दिया। वाह! क्या ग़ज़ब का इंटरव्यू था। कूड़े के प्रति कितना भावुक इंटरव्यू! उनके कूड़े के प्रति इंटरव्यू में सुने दृष्टिकोण से सभी दंग रह गए। कूड़े के प्रति नेता जी इतने संवदेनशील भी हो सकते हैं, किसी ने सोचा ही नहीं था। आँखें सौ तो आँसू चार सौ में।
फोटो सेशन पूरा होते ही कार्यक्रम सम्पन्न। मंत्री जी अपना झाड़ू डीसी साहब को थमा अपनी गाड़ी में बैठ सर्कट हाउस को रवाना हो गए। उनके जाते ही अफ़सरों ने अपने-अपने झाड़ू नाक-भौं सिकोड़ते हुए अपने-अपने विभाग से साथ लाए पीउनों के सिर पर मारे और आधे-पौने अपनी-अपनी गाड़ी में सवार हो नेता जी के अगले कार्यक्रम के फोटो सेशन को सफल करने अपने-अपने कमीशन पर हायर किए फ़ोटोग्राफ़र को लिए दुम दबाए उनके पीछे हो लिए।
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