कांग्रेचलेशन! भोलाराम का जीव मर गया! 

15-07-2025

कांग्रेचलेशन! भोलाराम का जीव मर गया! 

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बरसों से अपनी पेंशन लगने की फ़ाइल पर हर पुराने गए, नए आए बाबू को गर्मागर्म समोसे रख खाते देखते-देखते भोलराम का जीव थक तो गया, पर उसने फिर भी आस नहीं छोड़ी। यह अलग बात थी कि उसकी फ़ाइल पर बरसों से गर्मागर्म समोसे रखते-रखते फ़ाइल के आख़िरी पेज तक तेल जा चुका था। वह जानता था कि जनता के सुराज में जनता को जब तक आस हो, साँस टूटने नहीं देनी चाहिए। चाहे वह टूट चुकी हो। सुशासन की ओर से असंतुष्ट मरने वाले को मरने के बाद भी लगता रहना चाहिए कि भले ही वह अपनी जायज़ ज़रूरतों की माँग करते-करते मर गया हो तो मर गया हो, पर उसकी साँस उसके मरने के बाद भी चल रही है। यही लोकतंत्र में स्वस्थ मरने का नियम है। 

आज फिर एक मुर्ग़ी को उसकी फ़ाइल की क्लीयरेंस के बहाने फँसाकर बाबू साहब ने मुर्ग़ी से पाँच समोसे और साथ में गर्मागर्म चाय के चार गिलास साहब को पेश करने का हुक्म किया। ज्यों ही मुर्ग़ी बाबू साहब की मनवांछित रसद लेकर आई तो हर बार की तरह बाबू साहब ने उसे भोलाराम की पेंशन की फ़ाइल पर धर दिया। फिर दूसरे कमरे की तीन कुर्सियों को बुलाया, “मुर्ग़ी दाना लेकर आई है। मुर्ग़े लोग आ जाएँ प्लीज़!” 

चारों गर्मागर्म समोसे चाय के साथ खाने लगे तो एक भगवान में विश्वासधारी ने कहा, “सुना है, जब जनता की फ़रियाद प्रशासन नहीं सुनता तो उसे भगवान के कान में जाना चाहिए अपनी फ़रियाद सुनाने। मुझे अंधविश्वास है कि सरकार के अधिकारी दयालु हों या न, पर भगवान सौ प्रतिशत दयालु होते हैं। वे अपने भक्त की हर मन्नत चुटकी में पूरी कर देते हैं,” और आधा समोसा एक बार में ही उदर में। वाह! बाबू साहब का उदर। इधर उधर, सब किधर। 

बस! फिर क्या था। भोलाराम का जीव समोसों के तेल से चिकनी हो चुकी फ़ाइल के नीचे से अपने मुँह पर चिपकी मिलावटी तेल की धार को पोंछता उसी वक़्त भागवान की बस यात्रा में शामिल होने निकल पड़ा, भगवान के कान में अपनी फ़रियाद सुनाने। 

बाप रे बाप! भोलराम के जीव ने देखा, यहाँ तो भगवान के पास अपनी-अपनी फ़रियादें सुनाने लोगों को ताँता लगा है। मतलब, देश में जनता की फ़रियाद कहीं नहीं सुनी जा रही? तो फिर जनता का शासन काहे का? 

ख़ैर, भोलाराम के पास ज़्यादा सोचने का तो दिमाग़ था नहीं! इस सिस्टम में सबसे बड़ी दिक़्क़त यही है कि यहाँ जो सोचता है, वह सोचता ही रह जाता है। मरे कह गए हैं कि सुराज में ज़्यादा सोचना हर तरह के अस्वस्थ स्वास्थ्यधारी के लिए नुक़्सानदायक होता है। 

लो जी! सरकारी पेंशन का मारा भोलाराम का जीव अपनी फ़रियाद सुनाने भीड़ में भेड़ हो गया! आदमी का भीड़ में भेड़ होना नियति है, सौभाग्य है। 

और फिर वही जिसकी हर समागम से पहले ही पूरी पूरी उम्मीद होती है। फ़रियादियों में भगदड़ मची और जो भोलाराम पहले रिटायर होने के बाद पेंशन के लिए पेंशन बाबू के चक्कर लगाता-लगाता सुप्रबंधन को प्यारा हो गया था, एक बार फिर भगवान को अपनी फ़रियाद सुनाने के चक्कर में सुप्रबंधन को प्यारा हो गया। बड़े ख़ुशनसीब होते हें वे जो एक ही जीवन में दो-दो बार सुसिस्टम को प्यारे होते हैं। 

ज्यों ही भोलाराम का जीव सुसिस्टम को प्यारा हुआ तो वह क़ायदे से सीधा यमराज के दरबार में पहुँचा। तब उसने सोचा, काश! उसकी पेंशन भी जो उसके रिटायर होने के बाद सीधी इसी तरह उसे बैंक खाते में पहुँच जाती तो पहली मौत के बाद उसके जीव को भी फिर क्यों मरना पड़ता? पर वहाँ कोई युधिष्ठर तो था नहीं जो उसके जनरल से प्रश्न का उत्तर देता। जबसे जनता के प्रश्नों से फ़ाइलों के पहाड़ खड़े होने लगे हैं, युधिष्ठरों ने तबसे हर फ़ाइलों की गुफाओं से कूच कर लिया है। 

“और भोलाराम के जीव! आख़िर तुम आ ही गए! पेंशन लग गई क्या?” यमराज ने भोलाराम के जीव से पूछा तो भोलाराम के जीव ने कहा, “कहाँ यमराज सर! देश में कोई है ही कहाँ जो भोलाराम जैसों की सुने।”

“तो फिर क्यों आए? सिस्टम के आगे लंगर डाल दिए क्या?”

“नहीं यमराज सर! जो सिस्टम के आगे लंगर डाल दे वह देश का नागरिक ही क्या! असल में बाबू साहब से समोसे खाते हुए सुना कि जिसकी सिस्टम नहीं सुनता, उसकी भगवान सुनते हैं। बस, चला गया उनके दरबार में सिर पर अपनी फ़रियाद उठाए थोबड़ा लटकाए।”

“तो?” 

“तो क्या सर! वहीं हुआ, जिसका मुझे एक सौ एक परसेंट डर था। अपनी अपनी फ़रियादों की अपने से भारी गठरियाँ अपने सिर पर उठाए अपनी फ़रियादें दूसरों से पहले सुनाने के चक्कर में फ़रियादियों की भीड़ में भगदड़ मची और . . .”

“तो क्या वहाँ प्रशासन ने भक्तों की सुरक्षा के लिए पुख़्ता इंतज़ाम नहीं किए थे?” 

“किए थे, पुख़्ता नहीं, हमारे जैसों के लिए चुकता सर! पुख़्ता इंतज़ाम तो केवल वीआईपी, वीवीआईपिओं के लिए ही होते हैं लोकतंत्र में सर! 

“वोटर को एक बात बताना सर! भगवान के दरबार में भी वीआईपी, वीवीआईपी भक्त होते हैं क्या? उसकी नज़रों में तो सब बराबर होने चाहिएँ कि नहीं?” भोलाराम के जीव ने यमराज से हाथ जोड़े विनीत भाव पूछा तो यमराज ने अपना निःस्तेज मुखमंडल दूसरी ओर मोड़ लिया। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
पुस्तक समीक्षा
कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें