स्याही फेंकिंग सूची और तथाकथित साली की ख़ुशी
डॉ. अशोक गौतम
मासों के मास, हिंदी मास में हिंदी मैया के अभिनंदन स्वरूप हिंदी को अपनी वार्षिक श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु अपने फ़ेसबुक खाते के चूल्हे में चुनावी बयार की आहट पा मैंने गैस सिलेंडर सस्ता हो जाने की ख़ुशी में स्याही फ़रोशों से ठिठोली करते यह साहित्यिक आग जून के जंगल से भी ख़तरनाक ढंग से सुलगाई कि मेरा स्याही फेंकिंग साहित्य संस्थान हिंदी मास के शुभागमन के अवसर पर इस साल की तमाम साहित्यकार रैंकिंग सूचियों से बचे सौ धन्य, मूर्धन्य साहित्यकारों की विश्वसनीय सूची फ़ाइनल कर रिलीज़ करने जा रहा है। अतः अब तक जारी साहित्यकार रैंकिंग सूचियों में आने से बचे साहित्यकारों को सूचित किया जाता है कि वे अपने कसी भी तरह के परिचय सहित मेरे दर्शाए मोबाइल, व्हाट्सएप नंबर पर शीघ्र संपर्क करें ताकि योग्यों को स्याही फेंकिंग सूची में सुसम्मानीय स्थान मिल सके।
मेरे फ़ेसबुक पर यह डीज़ल पेट्रोल से भी ज्वलनशील पोस्ट डालने की देर भर थी कि मेेरा व्हाट्सएप नंबर परेशान हो उठा। फ़ेसबुक पर आभार, मैं भी, मैं भी . . . के शब्दों से मेरा फ़ेसबुक खाता ठसाठस भरने लगा।
उस वक़्त जो मेरे पास मेरी स्याही फेंकिंग सूची में अपना नाम दर्ज कराने के इच्छुकों के फोन सुनने को हज़ार कान भी होते तो वे भी कम पड़ जाते। हे भगवान! अभी भी साहित्य रैंकिंग सूची से बाहर जीवन गुज़र बसर कर रहे इतने मूर्धन्य! हे हिंदी तुम धन्य हो! जिसके पास बीसियों साहित्यकार रैंकिंग सूचियाँ जारी हो जाने के बाद भी इतने ही और सूची में अपना नाम दर्ज करवा अमर हो जाने को शेष हैं।
एक ओर फोन कान से तो दूसरी ओर नज़रें अपने फ़ेसबुक, व्हाट्सएप अकाउंट सॉरी, खाते पर। मिनट में सौ बार टन टन व्हाट्सएप मैसेज! मासिक हिंदी प्रेमी हुआ हूँ, इसलिए जैसे इन दिनों इंडिया को भारत कहने की जंग छिड़ी है, मैंने अकाउंट को खाता कहना लिखना शुरू कह दिया है। फ़ेसबुक को हिंदी में क्या कहते हैं? हिंदी का प्रकांड पंडित कोई शब्द हो तो सुझाएँ प्लीज़! ख़ुद तो बदल न सका। पर मैं अब हर अंग्रेज़ी के शब्द को हिंदी के ठेठ शब्द से रिप्लेस कर देना चाहता हूँ ताकि भाषिक समाज में बदलाव की बयार महसूसी जा सके।
तभी एक मूर्धन्या ने मुझसे फ़ेसबुक पर चैटिंग शुरू की, “प्रणाम जीजाजी! सपरिवार कैसे हो? दीदीजी कैसी हैं? बुरा न लगे तो आपसे ज़ुबान टू ज़ुबान मुख़ातिब होना चाहती हूँ। अभी-अभी फ़ेसबुक मैया से ज्ञात हुआ है कि मेरे डियर वन जीजूजी हिंदी मास में किसी भी वक़्त इस साल की स्याही फेंकिंगों की फ़ाइनल सबसे विश्वसनीय सूची जारी करने वाले हैं? इस पुण्य कार्य के लिए दीदी सहित भूरा-भूरा साधुवाद जीजाजी! आपकी अनाम साली की उम्र भी आपको लग जाए। आप सच्ची-मुच्ची को बधाई के पात्र हैं जो हिंदी मास में हिंदी के कल्याण के लिए यह पुण्य कार्य कर रहे हैं। दीदी आपके सारे दुःख दूर करे। वह आपको हर साल ऐसे ही सबसे विश्वसनीय साहित्यकारों की फेंकिंग सूची बनाने की असीम शक्ति दे। जय हिंदी मैया की।”
“और आपको ऐसे ही हिंदी में निरंतर लिखने की मेरी नई नई साली साहिबा,” मुझे नहीं पता था कि वे हिंदी में लिखती भी होंगी या नहीं, पर उनका उत्साह वर्धन करने के लिए मैंने उनके जवाब में टाइप किया।
“तो मैं इस सूची में अपना दर्ज नाम करवाने के लिए निवदेन कर रही हूँ। जीजू साहब! अब तक इस उस साल की किसीकी भी साहित्यकार रैंकिंग सूची में लाख कोशिशों के बाद भी मेरा नाम शामिल नहीं किया गया। हो सकता है, मैं दूसरे गुट का साहित्यकारा होऊँ! मैं विगत तीस बरसों से माँ हिंदी के श्री चरणों में अहर्निश सापेक्ष सेवाभाव से सेवा में तल्लीन हूँ,” तथाकथित साली साहिबा ने दूसरी ओर से टाइप किया।
“सापेक्ष सेवाभाव से?” मैंने जीजा होने के बाद भी यक्ष प्रश्न जगाया।
“जी जीजाजी! निरपेक्ष सेवाभाव से तो दीदी ने भी अपने बच्चे को दूध नहीं पिलाया होगा। अब तक कितने फेंकिंग साहित्यकार आपने अपनी लिस्ट के लिए फ़ाइनल कर लिए जीजाजी?”
“बस, सौ के लिए चार नाम बचे हैं,” मैंने आत्मीय सुख की गहरी साँस लेते टाइप किया। शुक्र है, चार उसके लिए सौभाग्य से बचे थे। न भी बचे होते तो एक को तो उसके लिए हर हाल में काट ही देता।
“इतनी जल्दी लिस्ट की सारी जगहें फ़ुल हो गईं? ये भारत पाक मैच के टिकट हैं या . . .” वे झल्लाईं।
“उससे भी संवदेनशील ज्वलनशील मैच के,” मैंने आँधी की स्पीड से टाइप किया।
“तो लास्ट में मेरा नाम भी डाल दीजिए न जीजू प्लीज़! ब्याह करने के बाद भी आभारी रहूँगी,” उन्होंने पूरे निवेदन से आत्मनिवदेन टाइप किया।
“तो लीजिए साहिबा! बधाई! आप भी सौ विश्वसनीय स्याही फेंकिंग साहित्यकारों की सूची में शामिल हुईं,” मेरे टाइप करने की सूचना पाते ही वे इतनी पागल हुईं कि उनकी चीख मुझ तक आ पहुँची।
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