मोबाइल लोक की जय! 

15-10-2022

मोबाइल लोक की जय! 

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

सुबह की बेक्रिंग बोले तो किंगों की महाकिंग ख़बर! अपने मोहल्ले के मोबाइल अडिक्शन जी के मोबाइल की बैटरी ख़त्म हो जाने से उनका मोबाइलावसान हो गया। तब वे अपने मोबाइल की बैटरी चार्ज करने को बहुत फड़फड़ाए। उन्होंने चार्जर ढूँढ़ने को इधर उधर बहुत हाथ-पाँव मारे। पर उन्हें उनके मोबाइल का चार्जर नहीं मिला तो नहीं मिला। 

उनको अति विनम्र श्रद्धांजलि! वे मोबाइल के इतने भक्त थे कि इतनी तो मीरा भी कृष्ण की न रही होगी। जो वे मीरा के युग में पैदा होते तो और तब मोबाइल का आविष्कार हुआ तो वे मीरा का स्थान पा जाते यह गाते हुए-मेरे तो मोबाइल लाल दूसरों न कोय! जाके सिर व्हाट्सएप, फ़ेसबुक और न जाने क्या क्या होय . . .

ज्यों ही उनके मोबाइलावास की ख़बर मोहल्ले में अफ़वाह से भी तेज़ी से फैली तो कई मोबाइल अडक्टियों के कान खड़े हो गए। उन्हें तो लगता था कि मोबाइल आज के आदमी की लाइफ़ लाइन है। मोबाइल आदमी का सुख-चैन सब कुछ ले सकता है, पर कम से कम उसकी जान नहीं ले सकता। हो सकता है कतिपय मोबाइल विरोधियों ने मोबाइल को बदनाम करने के इरादे से उनके देहावसान को मोबाइल के सिर मढ़ दिया हो। 

अब जो हुआ सो हुआ। उनका मोबाइल तो चार्ज करवाया जा सकता था पर वे चार्ज नहीं किए जा सकते थे। आदमी के बनाए सामान और आदमी में बस एक यही फ़र्क़ होता है। 

जब वे मोबाइलगामी हुए तो उन्होंने उस वक़्त भी सारी मोहमाया छोड़ मोबाइल हाथ में कसकर पकड़ रखा था वैसे ही भक्त ज्यों देह त्याग करने के बाद प्रभु को पकड़े रखता है। उनके मोबाइल चाहने वाले उनके घरवालों ने तब उनके हाथ से मोबाइल छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर उन्होंने मोबाइल न छोड़ा, तो न छोड़ा। 

उसे वे छोड़ भी कैसे सकते थे जिस मोबाइल के लिए उन्होंने बीवी सहर्ष छोड़ दी। जिस मोबाइल के लिए उन्होंने अपने रिश्तेदार सहर्ष त्याग दिए थे। जिस मोबाइल के लिए उन्होंने समाज तक मज़े से त्याग दिया था। जिस मोबाइल के लिए उन्होंने अपने तक को त्याग दिया था। जब देखो तब, बस, मोबाइल पर लीन! उनके लिए उनके माँ बाप, भाई बंधु, सब यह मोबाइल ही तो था। वे उठते बैठते उसे हरदम अपने सीने से लगाए रखते थे। एक पल भी उससे जुदा होकर जीना उन्हें ऐसा लगता था ज्यों प्रभु से उनका परम भक्त अलग होकर जी रहा हो। 

जब उनके हाथ से कोई उनका मोबाइल नहीं छीन पाया तो तय हुआ कि उन्हें उनके मोबाइल के साथ ही भेज दिया जाए। 

तब उन्हें लेने आए यमदूतों ने भी उनसे वह मोबाइल वहीं छोड़़ने को आग्रह किया। पर वे नहीं माने तो नहीं माने। उन्होंने उनसे दो टूक कहा, “देखो बंधु! मैं अपना सबकुछ यहाँ छोड़ सकता हूँ पर मोबाइल नहीं। मोबाइल में मेरी आत्मा का वास है बंधु!”

ज्यों ही वे हाथ में अपना मोबाइल लिए प्रभु के दरबार में पास हाज़िर हुए प्रभु ने उनके हाथ में अजीब सा यंत्र देख उनसे पूछा, “और बंधु! ये हाथ में साथ क्या लाए हो? कहीं कोई असंदिग्ध वस्तु तो नहीं?” 

“लाना क्या साहब! बस, मोबाइल है।” 

“इससे जीव क्या करता है?” 

“जनाब! ये पूछो कि क्या नहीं करता है। इस पर वह हर क़िस्म की गेम खेल सकता है। इसके माध्यम से ऑन लाइन ख़रीदारी से लेकर रंगदारी की जा सकती है। इसके माध्यम से वह मौसम का हाल जान सकता है। इसके माध्यम से वह अपना भूत, वर्तमान, भविष्य जान सकता है। इसके माध्यम से वह स्टॉक एक्सचेंज से लेकर हर एक्सचेंज ऑफ़र जान सकता है। इसमें आज के जीव की धड़कन है प्रभु! आज का जीव दिल के सहारे नहीं, इसके सहारे जी रहा है। इसके बिना जीव का शरीर होते हुए भी उसका कोई अस्तित्व नहीं। 

“आज का शादीशुदा अपने बीवी बच्चों के बिना रह सकता है, पर इसके बिना नहीं। आज के बच्चे अपने माँ बाप के बिना रह सकते हैं, पर इसके बिना नहीं। आज की बीवी अपने पति के बिना रह सकती है, पर इसके बिना नहीं। आज की जीव जल के बिना रह सकता है, पर इसके बिना नहीं। आज की जीव धरती पर धरती के बिना रह सकता है, पर इसके बिना नहीं। आज की जीव वायु के बिना रह सकता है, पर इसके बिना नहीं। आज की जीव आटा, चावल के बिना रह सकता है, पर इसके बिना नहीं। आज का जीव आकाश के बिना रह सकता है, पर इसके बिना नहीं। कुल मिलाकर प्रभु! आज के जीव के लिए यह सबसे अनिवार्य तत्व है। 

“प्रभु! पंचतत्वों के बिना जीव की कल्पना की जा सकती है, पर इसके बिना नहीं। आपके बिना जीव की कल्पना की जा सकती है, पर इसके बिना नहीं। 

“आपने जीव कल्याण के लिए उसे क्या-क्या नहीं दिया प्रभु! ऐसे में हो सके तो बस, मोबाइल प्रेमियों के हित में उनके कल्याणार्थ एक और लोक का निर्माण कर दीजिए ताकि मृत्युलोक में इसके होते गालियाँ खाने के बाद समस्त मोबाइल चराचर जीव जब तक पुनः मोबाइल देह प्राप्त नहीं कर लेते तब तक वहाँ निर्विरोध, निसंकोच अपने में खोए मोबाइल संग रहते आपकी जय जयकार करते में आराम से व्यतीत कर सकें।”

“तथास्तु!” मोबाइल प्रेमी का मोबाइल के प्रति अद्भुत प्रेम देख प्रभु गद्‌गद्‌ हुए और मोबाइल प्रेमियों के हितार्थ उन्होंने दस लोकों में एक और लोक एड करते उसका नाम रखा, मोबाइल लोक! 
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता
पुस्तक समीक्षा
कहानी
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें