मॉर्निंग वॉक और न्यू कुत्ता विमर्श
डॉ. अशोक गौतमवैसे तो इन दिनों बिन पैसे लिए किसीके कोई जूते भी नहीं मारता, पर मेरी बात ज़रा और है। कोई माने या न, पर मैं बिन पैसों के आज भी उसी तरह मित्रहित में मित्रों को सलाह देता रहता हूँ, जैसे अपने समय में मेरे दादाजी के दादाजी दिया करते थे। इसे अब आप दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं कि मुफ़्त में सलाह देना मेरी खानदानी बीमारी है। और आप तो जानते ही हैं कि हर बीमारी का इलाज मेडिकल साइंस के पास उपलब्ध है, पर ख़ानदानी बीमारी का नहीं।
इसी बीमारी को आस्तीन में छिपाए कल मैं उनके साथ घर से टलने के बहाने टहलने निकला था तो उन्होंने बातों ही बातों में खाँसते हुए मुझसे पूछा, "दोस्त! एक बात तो बताना। इस उम्र में मुझ पर कैसा कुत्ता सूट करेगा?" उनकी बात सुन मैंने हँसते हुए खाँसते हुए कहा, "जब आदमी घर में कुत्ता हो जाए तो उसे अपनी सेहत का ध्यान रखते हुए कुत्ता लेने की क्या ज़रूरत दोस्त!" सुनते ही सुबह सुबह नाराज़।
असल में बिन पैसे की सलाह देने पर कंजूस से कंजूस क़िस्म के लोग तक आपसे नाराज़ हो सकते हैं। पहले तो उन्हें लगा था कि मैं सरकार के मुफ़्त में सड़े आटे-सी सलाह उन्हें दे रहा हूँ। जब मुझे लगा कि दोस्त नाराज़ हो गए तो मैंने गंभीर होते पूछा, "अच्छा तो डियर! कैसा कुत्ता देना चाहते हो अपने को? बुढ़ापे में हर आदमी को कम से कम एक कुत्ते के साथ ज़रूर रहना चाहिए। इसका सबसे बड़ा फ़ायदा यह होता है कि घरवालों को पता ही नहीं चलता कि कौन भौंक रहा है। इससे अपनी इज़्ज़त भी बची रहती है और मन की भौंक भी निकल जाती है। तो तुम कौन सा कुत्ता लेने का माइंड बना रहे हो?"
"आई थिंक, विदेसी कुत्ता ही लूँ।"
"इतने पैसे बैंक खाते में हैं? बर्थ इन इंडिया वाला कुत्ता क्यों नहीं?"
"अपना सबकुछ देख लिया दोस्त! बेटे से लेकर बीवी तक सब। ऐन मौक़े पर सब धोखा दे जाते हैं। अब तो बस चाहता हूँ कि . . ."
"तो ऐसा करने पर अपने देश के कुत्तों का क्या होगा?"
"होता रहे जो होता रहे। सारी उम्र लोकल ही अपनाया और पेट से लेकर पीठ तक गच्चा ही खाया। तो अब बताओ कि कुत्ता अमेरिका से लाऊँ या रूस से? या फिर लंदन से?"
दोस्त की बातों से साफ़ लग गया था कि आलू प्याज़ तक न ख़रीद पाने वाला दोस्त कुत्ता ख़रीदने को पूरा मन बना चुका है। सो मैंने उनके हित को ध्यान में रखते हुए उन्हें बिल्कुल फ़्री की सलाह देते कहा, " तो ऐसा करो दोस्त! जो विदेशी कुत्ता लाने का तुमने मन बना लिया है तो पहले गली का कुत्ता कुछ दिन अपने साथ रखो।"
"तुम हट-फिर कर मुझे बार-बार लोकल पर क्यों ला रहे हो यार?" वे कुत्ता न रखने से पहले ही मुझ पर गुर्राए तो मैं सहमा। हद है यार! अभी तो इन्होंने कुत्ता रखने भर की सोची ही है और कुत्तों वाले गुण इनमें अभी से आने लग गए?
"नहीं, वैसी बात नहीं। जैसा तुम सोच रहे हो। मैं तो चाह रहा हूँ कि जिस तरह से जो समझदार लोग नई गाड़ी लेना चाहते हैं, वे पहले सेकेंड हैंड गाड़ी लेते हैं।"
"क्यों?"
"इसलिए कि जो गाड़ी चलते-चलाते कहीं ठुक-बज जाए तो सेंकेड हैंड गाड़ी के ठुकने-बजने का उतना दर्द नहीं होता जितना नई गाड़ी के ठुकने-बजने को होता है। जब गाड़ी सीख गए तो उसके बाद पुरानी गाड़ी दी और नई गाड़ी ले आए। इसी तरह पहले देसी कुत्ते के साथ रहना सीख लो। इससे तुम्हें कुत्ते के बिहेवियर का पता चल जाएगा और कुत्ते को तुम्हारे। किसी भी कुत्ते को प्यार से रखने के लिए क्या-क्या करना ज़रूरी होता है? बेसिक-सा तो उसके साथ भी सीख ही जाओगे। सब कुत्तों की बेसिक नेचर आदमियों की तरह लगभग एक-सी ही होती है। अच्छा तो बोलो, तुम्हें अँग्रेज़ी बोलनी आती है?"
"नहीं तो? पर मुझे कौन से किसी आईएएस के साथ बात करनी है। मुझे तो कुत्ते के साथ ही तो बात करनी है," उन्होंने अपनी उम्र-सा बेकार का मुद्दा उठाया।
"नहीं, वैसी बात नहीं। आजकल के कुत्ते आदमियों से अधिक भाषा के स्तर पर संवेदनशील हो गए हैं। उनसे ज़रा सी भी लूज़ भाषा में कह दो तो लाख वफ़ादार होने के बाद भी काट ही देते हैं। और तुम तो विदेसी कुत्ता लेना चाहते हो। ऐसे में कम से कम अँग्रेज़ी तो सीखनी ही पड़ेगी न! विदेसी कुत्ते के साथ हिंदी बोलोगे तो उसमें कांप्लेक्स आ गया और कुत्ते ने तुम्हारी हिंदी से तंग आकर कहीं सुसाइड-सुसुइड कर दिया तो??"
"तो?" मेरे मुँह से सुसाइड शब्द सुन वे सिर से पाँव तक काँपे।
"तो पहले तो इंगलिश के मर्म को समझो।"
"मतलब मरते हुए अँग्रेज़ी?" वे मेरा मुँह ताकने लगे तो मैंने कहा, "बंधु, ये तो अँग्रेज़ी की ही बात हो रही है अभी। सच जानना चाहते हो तो कुत्तों को पालने वाले परेशानों से पूछो कि कुत्तों के साथ रहने के लिए लिए क्या-क्या नहीं सीखना करना पड़ता। ग़लती से जो तुम्हारा मन जापानी नस्ल के कुत्ते पर आ गया तो जापानी भी सीखनी पड़ेगी," मुफ़्त की सलाह देते हुए उसमें थोड़ा डर भी मिला देना चाहिए ताकि मुफ़्त की सलाह हो कोई हल्का न समझे।
"अच्छा तो, एक बात बताओ? कौन सी विदेसी लंगुएज सीखने में सबसे हल्की है?" उनके डरते-डरते पूछने पर मैंने अपने दिमाग़ पर दिखावे के लिए ज़ोर डालते कहा, "अँग्रेज़ी!"
"वह कैसे? उसमें तो मैं हर क्लास में नकल मार कर ही पास हुआ हूँ।"
"देखो, हम इतने सालों तक अँग्रेज़ी के ग़ुलाम रहे कि नहीं? आज भी आज़ाद होने के बाद उसके ही ग़ुलाम हैं कि नहीं? आज भी हम हिंदी में लिपटी अँग्रेज़ी ही खाते-पीते, ओढ़ते-जोड़ते हैं कि नहीं? हमारे ख़ून में हिंदी घुली हो या न, पर अँग्रेज़ी चीनी की तरह घुली हुई है। देखा नहीं तुमने हमारे पड़ोस की हिंदी वाली मैडम कितनी फर्राटेदार अँग्रेज़ी बोलती है? उसके साथ हिंदी में बात करो तो वह खाने को किस क़दर पीछे पड़ती है?"
"हाँ यार! वो बात तो है। तो??"
"तो क्या! पहले अपने फ़ायदे के लिए हम विलायती कुत्ते के साथ रहने के लिए प्रथम स्टेज में देसी कुत्ता प्रयोग करेंगे। उसके साथ रहना-सहना, उठना-बैठना सीखेंगे। अपनी झिझक उतारने के लिए उसके साथ हिंदी में लपेटी टूटी-फूटी अँग्रेज़ी बोलेंगे।"
"इससे क्या होगा? कुत्ता जब देसी होगा तो . . ."
"होगा यह कि तुम्हारी अँग्रेज़ी बोलने की झिझक खुलती जाएगी। वह देसी होगा, इसलिए तुम्हारी अँग्रेज़ी को लेकर तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ाएगा। जब तुम्हारा मज़ाक नहीं उड़ाएगा तो तुम्हारी हिंदी की टोन में अनाप-शनाप बकी अँग्रेज़ी पर कांफ़िडेंस बढ़ेगा। इसी बीच उसकी आँख बचाकर कहीं इंगलिश स्पीकिंग कोर्स ज्वाइन कर लेना। जब लगे कि तुम अँग्रेज़ी मीडियम वाले कुत्ते के साथ रहना सीख गए और उसके साथ अँग्रेज़ी बोलने लायक़ हो गए तो स्वदेसी कुत्ते को किक मार कर बाहर कर देंगे और उसकी जगह शान से विलायती कुत्ता ले आएँगे ईएमआई पर," कहते मैं अपनी मुफ़्त की सलाह का पिटारा समेटने को ज्यों ही हुआ तो वे मेरे पाँव छूने को झुके तो मैंने कहा, "मित्र! मेरे नहीं! सामने खड़े स्वदेसी कुत्ते के पाँव छुओ। आज से मेरी जगह यही तुम्हारा सच्चा मित्र हुआ दोस्त!" हालाँकि उनको और मुझे अभी कुछ और आगे तक साथ चलना था। फिर भी उन्होंने बिन कहे चुपचाप अपना रास्ता बदल लिया। पता नहीं क्यों?
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