शर्मा जी को कुत्ता कमान

15-07-2023

शर्मा जी को कुत्ता कमान

डॉ. अशोक गौतम (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

लोकतंत्र को और मज़बूत करने के इरादे से सूअरों ने अपने संघ के चुनाव कराए ताकि बाद में वे अपने संघ का विलय सरकार में कर लोकतंत्र को मज़बूत करने में अपना योगदान दे सकें। लोकतंत्र को मज़बूत करने के इरादे से गधों ने अपने संघ के चुनाव कराए ताकि समय आने पर अपनी एकता को बता वे सरकार से अपनी मनमानी बातें मनवा सकें। लोकतंत्र में मज़बूत होने के इरादे से कौवों ने भी अपना संघ बना उसके चुनाव कराए ताकि नेताओं से उनके नुमाइंदे अपने संघ के वोट सरकार को बता उससे चुनाव के दिनों में बारगेनिंग कर सकें। 

कुत्ते अपनी पिछली टाँगों में अपनी दुम दबाए चुप रहे। क्योंकि वे जन सेवकों के महलों में रहते थे। वे उनके चरणों में रहते थे जो सबकी बातें मानते थे। सो उन्होंने सोचा कि जन सेवकों की गोद में तो वे रहते ही हैं, इसलिए अपना संघ बनाने की क्या ज़रूरत? जब मन किया उनसेसे सीधे बात की और अपनी बता मनवा ली। 

पर एक दिन कुत्तों को लगा कि जिनके वे वफ़ादार हैं, वे उनकी बात नहीं सुन रहे। उन्हें लगा कि लोकतंत्र में वफ़ादारों की बात अब कम सुनी जाने लगी है। 

अतः हर नस्ल के ज़रा से भी समझदार कुत्तों ने मिल बैठ, आपसी दुश्मनी भुला तय किया वे भी लोकतंत्र में मज़बूत होने के लिए अपना संघ बनाएँगे। यह बात कुत्तों के दिमाग़ में आते ही देश के हर ज़िले में ज़िले के कुत्ते आपसी नस्ल भेद को भुला एकजुट हुए। कुत्तों के जनरल हाउस में गली के कुत्ते अकेले तो पालतू कत्तों के साथ कुत्तों सेे आगे मालिक आए। कुत्तों के जनरल हाउस में कुछ कुत्ते ऐसे भी थे जिन्हें मालिक सुबह ही घर से निकाल देते थे ताकि वे किसीको काटे तो उनके मालिक की पहचान न हो सके। इस तरह उनकी कुत्ता पालने की चाह भी पूरी होते रहे और उनके कुत्ते द्वारा किसीको काटने पर उनपर कोई आँच भी न आए। कुछ मालिकों ने अपने कुत्तों के पट्टे अपने गले में डाल लिए थे, इसलिए वे बिन पट्टे के ही जनरल हाउस में पधारे। 

कुत्तातंत्र में कुत्तों की कार्यकारिणी बनाने हेतु चुनाव की घोषणा होने पर कहीं कुत्तों ने चुनाव में अपना उम्मीदवार जिताने के लिए लाबिंग की तो कहीं कुत्तों के मालिकों ने। कहीं पोलराइजेशन हुई तो कहीं मोलराइजेशन। चुनाव से पहले अपने अपने पक्ष में कुत्ते वोटरों को करने के लिए ख़ूब मांस मदिरा चली। अपने अपने कुत्तों की वफ़ादारी के आधार पर सबने अपनी अपनी दावेदारी ठोंकी। आवारा कुत्ते संख्या में अधिक थे तो उन्होंने साफ़ कह दिया की ज़िला स्तर के कुत्ता संगठन में प्रधान हमारा ही होगा। वे पालतू नहीं हुए तो क्या हुआ? पालतू चाहे नेता हो या कुत्ता! वह अपनी बिरादरी की समस्याओं को आगे ज़ोर-शोर से उठा ही नहीं सकता। दूसरे गली के कुत्तों को पता था कि समझदार होने के चलते जो पालतू कुत्तों को ज़िला कुत्ता संघ का प्रधान या सचिव बना दिया तो वे आम कुत्तों के हक़ में कोई भी फ़ैसला अपने दिमाग़ से नहीं ले पाएँगे। उन्हें क्या पता आम कुत्तों की दुश्वारियाँ क्या हैं? वे अपनी पंचायत की महिला प्रधान का हाल देख चुके थे जो कहने को ही प्रधान थी। पंचायत के सारे फ़ैसले उसका पति उसका राजनीतिक सलाहक़ार बन लेता था। ऐसे में जो किसी समझदार पालतू कुत्ते के हाथों ज़िला कुत्ता संघ की कमान सौंप दी और कल को कुत्ता संघ के प्रधान के सारे फ़ैसले उसका मालिक लेने लगा तो ज़ाहिर है वह कुत्ता संघ का प्रधान का राजनीतिक सलाहकार होने के बाद भी सारे फ़ैसले आदमियों के हक़ में ही लेगा। 

कुत्ता ज़िला संघ के चुनाव की आख़िरी रात तक ख़तरनाक गेमें चलती रहीं। कुत्तों से अधिक कुत्तों के मालिकों की नाक इस चुनाव में दाँव पर लगी हुई थी। ज़िला कुत्ता संघ चुनाव में शर्मा अपनी नाक बचाने में जुटे थे तो वर्मा अपनी। जबकि भंडारी दोनों की नाक पर उस्तरा रखे थे। कुत्ता ज़िला संघ के पद पर जिस-जिस के कुत्ते खड़े थे या कि कुत्तों के आगे जो-जो खड़े थे, सबने अपने कुत्ते के बहाने अपनी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए चुनाव प्रचार बंद होने के बाद सारी रात कुत्ते वोटरों को शराब की गंगाओं में गले के ऊपर तक डुबोया। ऑब्ज़र्वरों को कभी लगता कि पालतू कुत्तों के मालिक प्रधान पद पर बाज़ी मार जाएँगे तो कभी लगता गाँव के कुत्ते तो कभी लगता कि प्रधान मेकर की भूमिका में गली के कुत्तों का अहम रोल रहेगा। 

लोकतंत्र के जन-बल पर धन-बल की तरह कुत्ता ज़िला संघ के चुनाव में भी धन-बल की ही जीत हुई और ज़िला कुत्ता संघ की नई कार्यकारिणी का गठन हो गया। नई कार्यकारिणी में शर्मा जी ने अपने कुत्ते के बहाने भारी मतों से जीत हासिल की। उनके ही चुनाव से पहले ख़ास रहे चार की तो ज़मानत भी ज़ब्त हो गई। 

उन्होंने वर्मा के साथ सीधी टक्कर में दो सौ कुत्ता मत अधिक प्राप्त किए। ज़िला कुत्ता संघ चुनाव में वर्मा को केवल बीस वोट मिले। जबकि पच्चीस उनके रिश्तेदार ही थे। इस चुनाव में ज़िले भर के तीन सौ हर नस्ल, वर्ग के कुत्तों ने अपने कुत्ताधिकार का प्रयोग किया। ज़िला कुत्ता संघ के स्वयंभू राज्य के चुनाव वरिष्ठ उप्रधान आर पाल, स्वयंभू चुनाव प्रदेशाध्यक्ष सी राम की अध्यक्षता में शान्ति पूर्ण वातावरण में चुनाव सम्पन्न हुए। ज़िला कुत्ता संघ में वरिष्ठ उप प्रधान पद हेतु सर्व श्री डीआर और महासचिव श्री एस पंडित को सर्वसम्मति से चुना गया। 

ज़िला कुत्ता संघ के नव निर्वाचित प्रधान के राजनीतिक सलाहकार के रूप में तत्काल कुत्ता संघ की कार्यकारिणी का विस्तार करते हुए आर सिंह को कोषाध्यक्ष, पी सिंह को महासचिव बनाया गया। इसके अलावा कार्यकारिणी में बीस सदस्य और नामित किए गए। ग़ौरतलब हो कि वे सब शर्मा जी के कुत्ते के ख़ास हैं। शर्मा जी ने अपने कुत्ते को प्रधान पद की शपथ खिलाने के बाद तुरंत कहा कि शेष पदों पर नियुक्तियाँ दिल्ली से हाईकमान से सलाह मशविरा करने के बाद की जाएँगी। उनकी कोशिश रहेगी कि इस कार्यकारिणी में हर वर्ग, हर जात के आदमी को समान प्रतिनिधित्व मिले। 

उधर प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए शर्मा जी ने ज़िला कुत्ता संघ के प्रधान की ओर से कहा कि वे ज़िला कुत्ता संघ के प्रधान के राजनीतिक सलाहकार होने के नाते तमाम विपक्षी कुत्तों की हरकतों को भुला समस्त कुत्तों की हर जायज़, नाजायज़ समस्या का समाधान सरकार से करवाने का प्रयास करेंगे। उनके कुत्ते के बहाने जो ज़िला भर के कुत्तों ने उनमें विश्वास जताया है, उसके लिए वे ज़िले के समस्त कुत्तों का दिल से आभार व्यक्त करते हैं। यह शर्मा जी की जीत नहीं, हर कुत्ते की जीत है। अब उनकी बस यही प्राथमिकता रहेगी कि सभी कुत्तों की कसौटी पर वे सोए-सोए भी खरे उतरें। 

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