मंत्री जी का जंगलारोपण इवेंट
डॉ. अशोक गौतम
मंत्री जी ने चमचों के साथ दो घंटे से चल रही गप्पों की गंभीर बैठक अचानक रोकी और पीए को बुलाया, “पीए साहब! इस महीने के सारे जनहित काम हो गए न? देखो, हमें पेंडेंसी क़तई पसंद नहीं। कल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में सरकार गिर जाए न, बहुरि करेगा कब!”
“जी जनाब! आपके चुनाव क्षेत्र के बाढ़ग्रस्त एरिया का भाभी जी ने पूरा दौरा कर लिया। वह भी एक बार नहीं, चार चार बार ताकि चुनाव क्षेत्र का कोई भी बाढ़ग्रस्त कोना उनकी आँखों से ओझल न रहे। आपके बाढ़ प्रभावितों के प्रति संवेदनाओं को लेकर जितने प्रेस नोट और फोटो अख़बारों में छपे, बधाई हो सर! वे दूसरे मंत्रियों से दुगने ही छपे।”
“छपते क्यों नहीं। हर अख़बार हम ही तो चलाते हैं पीए साहब! ससुरे हमारी गोद में न बैठें तो दूसरे दिन यतीम हो जाएँ,” मंत्री जी हँसे तो उनके चमचों में उनका क़द और बढ़ा। हमें तो हमें, ये तो मीडिया को भी सँभाले हैं। उन्हें क्या पता कि वे उनसे अधिक मीडिया को सँभाले हैं।
“और?”
“और सर! आपने जो बाढ़ग्रस्त जनता में सहायता राशि उनको हवाई जहाज़ से गिराने के बहाने अपने समर्थकों के घरों पर गिराने को कहा था, वह भी हो गया। हमने एक भी सहायता सामग्री का पैकेट विपक्ष के किसी भी समर्थक के घर पर नहीं गिरने दिया?”
“गुड! वेरी गुड! हम हैं तो सबकुछ मुमकिन है। और अब इस माह का बचा क्या है जनता को करने को?”
“सर! सॉरी! एक बात तो बताना भूल ही गया था,” कह पीए ने अपना सिर मुस्कुराते-मुस्कुराते झुका लिया तो वे सिर ऊँचा किए पूछे, “क्या?”
“सर! बरसात जा रही है। पर सर! इस बार आपके कर कमलों द्वारा अब तक सद्भावना का पौधा नहीं लगा।”
“क्यों?”
“सर आप जनहित के दूसरे कामों में व्यस्त ही इतने थे कि . . . मुझे लगा आप ओवर लोडिड हो जाएँगे। इसके लिए सॉरी सर!
“सर! हर साल आपका पर्यावरण बचाने के लिए पौधा लगाना बहुत ज़रूरी होता है। आप का लगाया एक पौधा लाखों पौधों में जान फूँकता है सर! जब तक आप पौधा नहीं लगाते, जनता भले ही कितने ही पौधे क्यों न लगा ले, उनका कोई महत्त्व नहीं होता। वे पर्यावरण की रक्षा नहीं कर पाते। वे जंगल नहीं बन पाते।”
“पर यार! बाहर पानी इतना भरा है कि पौधा तो पौधा, तिल धरने को जगह नहीं। ऐसे में पौधा कहाँ लगाएँगे?” मंत्री जी चिंतित हुए।
“सर! आपको पर्यावरण हित में पौधा हर हाल में लगाना होगा। अगर आप पौधा नहीं लगाएँगे तो ग्लोबल वार्मिंग और बढ़ जाएगी। अगर आप पौधा नहीं लगाएँगे तो अगले साल पानी की और क़िल्लत हो जाएगी। अगर आप पौधा नहीं लगाएँगे तो अगले साल बसंत में ही लू चलनी शुरू हो जाएगी। इसलिए जनहित में आपको पौधा लगाना ही होगा सर! वर्ना अगले बरस फिर सरकार के विकास का भैंसा और भी गहरे पानी में चला जाएगा।”
“अच्छा! ये बात है तो हम जनहित में पौधा ज़रूर लगाएँगे। पर . . .”
“इसका भी इंतज़ाम मैंने कर लिया है सर! आप अपने ऑफ़िस में ही जंगलारोपण करेंगे।”
“ऑफ़िस में! यहाँ मेरे कठोर अनुशासन के डर से पौधा सूख गया तो?”
“सर! ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा नहीं होगा! आपके कर कमलों को जनता ने बहुत शीष बख़्शी है। आपने भ्रष्टाचार का पौधा लगाया। देखो तो जनाब आज वह कितनी शान से लहलहा रहा है। जनाब! आपने भाई भतीजावाद का पौधा लगाया। देखो तो सर! वह भी आज कितनी शान से हर जगह लहलहा रहा है। सर! आपने बेईमानी का पौधारोपण किया। देखो तो जनाब! वह भी आज समाज में किस तरह हर जीव को शीतलता प्रदान कर रहा है। सर! आपके लगाए पौधे आज तक सूखे कहाँ जो यह पौधा सूख जाएगा? आपके हाथों में वह जादुई शक्ति है कि जो आप सूखे बाँस की टहनी भी लगाएँ तो वह भी दूसरे ही दिन बिन खाद पानी के हरी हो जाए। सर! आप-सा समाज सेवक मैंने अपनी नौकरी पहली बार देखा। वाह! कितना निःस्वार्थी! आप तो निःस्वार्थ, त्याग, ईमानदारी, कमर्ठता की साक्षात् मूर्ति हो सर! ऐसी अमूर्त मूर्त को मेरा शत् शत् नमन्! आप जैसे जन सेवक लोकतंत्र में युगों बाद जनता की रक्षा के लिए जन्म लेते हैं सर,” पीए ने चमचों के सामने उनमें हवा भरी तो जनाब असामान में। वैसे जबसे वे मंत्री जी हुए हैं तबसे ज़मीन पर कम ही रहते हैं।
“तो इसके लिए करना क्या होगा? इतनी जल्दी इवेंट मैनेज हो जाएगा क्या?” मंत्री जी आर्टिफ़िशियली गंभीर हुए।”
“क्यों नहीं जनाब! बंदा है किसलिए? अभी प्रेस नोट बनाकर भेज देता हूँ कि कल मंत्री जी अपने ऑफ़िस में जंगलमहोत्सव मनाते प्रेम भाईचारे, तप, त्याग का अजर अमर कल्पवृक्ष लगा रहे हैं। इस अवसर पर वे एक और वृक्ष पर्यावरण को समर्पित करेंगे।”
“और भीड़ का क्या होगा?”
“आप चिंता न करे जनाब! आपके विभाग के सारे अफ़सर बुला लिए जाएँगे। वे और करते भी क्या हैं? और . . . और आपके जंगलमहोत्सव में जो सबसे हटकर होगा वह ये कि सब हरे कपड़े, हरे जूते, हरे मौजे, मुँह पर हरा रंग पोते आएँगे ताकि पौधा लगने से पहले ही वातावरण हरा भरा हो जाए।”
“पर पौधा किस चीज़ का लगाएँगे? तुम्हें तो पता है कि हम सेकुलर कम नॉन सेकुलर हैं। तो पौधा भी ऐसा ही लगना चाहिए जो सेकुलरों में भी फ़िट हो जाए और नॉन सेकुलरों में भी। वह सेकुलरों का भी न हो और नॉन सेकुलरों का भी नहीं। वह सेकुलरों की प्रजाति का भी हो और नॉन सेकुलरों की प्रजाति का भी। सब में पौधे को लेकर मेरी तरह ही भ्रम की स्थिति बनी रहनी चाहिए कि मेरी तरह पौधा भी है तो क्या?”
“सब समझ गया जनाब! आप चिंता न करें। ऐसा ही होगा। सर! अब बजट की बात भी हो जाए तो?”
“बजट की कोई चिंता नहीं। पर . . .”
“तो सर! मोटा-मोटा दो-चार लाख रख लीजिए। आपके जंगलारोपण के बाद सबको लंच, चाँदी का गमला और नॉन सेकुलर कम सेकुलर पौधा। आप तो जानते ही हैं जनाब कि हर धर्म में फ़िट होने वाले नेता तो बहुत मिल जाते हैं पर पौधे बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।”
“डोंट वरी! बस! प्रोग्राम चकाचक जाए हर बार की तरह! और हाँ! मीडिया को बता देना कि पौधे से अधिक फ़ोकस मुझ पर हो।”
“मेरे होते हुए चिंता की कोई बात नहीं जनाब!” पीए साहब ने उन्हें हद से अधिक आश्वस्त किया और कल के मंत्री जी के जंगलमहोत्सव हेतु उनके विभाग के मुखियाओं, मंत्री जी के चहेते पत्रकारों को अपने कमरे में ला मंत्री जी से अधिक गंभीर हो आवश्यक दिशा निर्देश देने में जुट गए।
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