सवाल! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

सन् सैंतालिस के नील गगन में
धूल, धुआँ, आँधी, अँधियारा
यही भविष्यत् पाने को क्या 
वीरों ने निज जीवन वारा? 
 
गाँधी ने लाठी खाई 
आज़ाद भगत ने भेंट चढ़ाई, 
बोस गए जापान-जर्मनी
आज़ाद हिन्द की फ़ौज बनाई, 
 
सन् सत्तावन की ज्योतित मणियाँ, 
नाना तांत्या जिसकी कड़ियाँ
कुंवरसिंह वह शेर सवाई
प्रकट भगवती लक्ष्मीबाई, 
 
फतेहसिंह बेगम हजरत
गए बना इतिहास अक्षत 
देशभक्त अज़ीमुल्ला खान
मंगल पाण्डे वर बलवान, 
 
बोला जितना बोल सका हूँ
अगणित योद्धा छूट गए हैं
कुछ की आहट इतिहासों में
कुछ स्वर-बुदबुद फूट गए हैं, 
 
उत्तर दे नभ के क्रूर देव! 
तू जवाबदेह है धरती प्रति, 
पूछ रहा है हिंदुस्तान, 
महाभारत का यह वरदान! 
अमृतमंथन का परिणाम! 
 
उत्तर दे हे रे हवनकुण्ड! 
कितना रक्त पिया तूने? 
कितनी अस्थियाँ चबाई हैं? 
लीली राखी कितनों की, 
कितनों की चूड़ियाँ खाई हैं? 
 
छिप मत सिंहासन आता हूँ, 
तुझे भागने कैसे दूँ? 
यह घोर अँधेरा तू लाया है, 
मौन ताकने कैसे दूँ? 
 
छूटा था जो भी किरण पुंज
तेरे बंगलों तक सिमट गया? 
बन्दी हुई पुष्प की ख़ुश्बू, 
ध्यान लक्ष्य से उचट गया? 
 
सत्याग्रह तो हुआ पुराना, 
शोषक बन बैठे नेतादल 
मोटी होने लगीं थैलियाँ 
भाँति भाँति के करते छल बल, 
 
खेतों की हरिता चुरा चुरा
अपने उपवन में रोप दिया
गाँधी की मूर्च्छित देही पर
दोबारा छुरा घोंप दिया! 
 
माना रथ जर्जर तुम्हें मिला था
पर बागडोर तो थी स्वतन्त्र
क्यों पर्वत शिखरों तक गए नहीं
क्यों पढ़ा नहीं रे विजय मंत्र? 
 
तनी झोंपड़ियाँ उत्तर माँगेंगी, 
लाठी से डर न भागेंगी, 
कंठ साफ़ कर लो सिंहासन, 
कुछ जागी हैं, कुछ जागेंगी॥

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