अंतर्द्वंद्व

01-09-2025

अंतर्द्वंद्व

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

हमें अलग होना होगा 
पर अफ़सोस! 
हम इस तरह अलग नहीं हो सकते 
जैसे कमरे की दो दीवारें 
पीठ जोड़े हुए 
या कि नदी के दो किनारे 
जो सूख जाने पर पार किये जा सकें 
अथवा पुल बनाकर मिलाये जा सकें 
शायद आपकी अचेतन चेतना इस अलगाव का समर्थन करे 
पर अनजाने ही सही, आप भी उन हिंसक नाखूनों का नुकीलापन हैं 
जो खुरच देना चाहते हैं फूल की नाज़ुक पंखुड़ियाँ 
भींच लेना चाहते हैं मुट्ठी में हवा की स्वच्छन्दता 
निर्धारित करते हैं खिड़कियों का आकार व कोण 
ताकि तुम अपना नहीं बल्कि उनका आकाश देखते रहो
हम दो परस्पर विरोधी सेनाओं के सैनिक हैं
हम दो को एक में बदलना है 
या तो मिटकर
या मिटाकर! 

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