हुंकार

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 181, मई द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

अश्रु बहुत तू पी चुका, 
अंगार बनाकर अब उगल।
नींद भर तू सो चुका, 
हे वीरवर! अब जाग, चल॥
शस्त्र भू पर क्यों पड़े, 
तू शस्त्र धर, संग्राम कर।
मातृभूमि माँगती है, 
रक्त का निज दान कर॥
कर सृजन ख़ुद का प्रकाश, 
चंद्र बनकर क्या करेगा, 
बन सके तो सूर्य बनकर तू दिखा।
यूँ तो चढ़े हैं शीश कितने, 
भारती की गोद में,
अब  देर न कर काटकर, 
एक शीश अपना भी चढ़ा॥ 

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