हे हरि! 

15-06-2022

हे हरि! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैं जीवन की बीच धार में, 
डूब रहा हूँ अन्धकार में, 
देख रहा हूँ राह तुम्हारी हे हरि! 
 
मैं बुद्धि के अहंकार में, 
ग्रंथों के व्यापक प्रसार में, 
मूढ़ मापता थाह तुम्हारी हे हरि! 
 
मैं त्रय तापों से विकल देह, 
ढूढ रहा अपना चिर-गेह, 
तनिक चाहता छाँह तुम्हारी हे हरि! 

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