अबूझी मंज़िल अनजानी राहें

01-08-2022

अबूझी मंज़िल अनजानी राहें

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मत पूछ हमारी मंज़िल क्या मत पूछ सफ़र का क्या उद्देश्य
 
सूनी-सूनी पड़ी राह को 
संगति देने हेतु चला
बुझते देखा दीपक को तो
मैंने ख़ुद को दिया जला, 
 
मत जान मेरे तट का परिचय, मत पूछ क्षरण का क्या उद्देश्य . . . 
 
हम तो उस दर ही पहुँच गए
जहाँ प्यास हमारी ले आई
उस क्षण मोहित हो झूम उठे
जब कली भ्रमर पर मुस्काई
 
मत पूछ हमारी मस्ती क्या मत जान भ्रमण का क्या उद्देश्य . . . 
 
सपनों के तम्बू गाड़-गाड़
आशा से पहरा दिलवाया
हर बार छला जाने पर भी
आहट पे ही दाँव लगाया
 
मत पूछ हमारा पागलपन मत पूछ नयन का क्या उद्देश्य . . . 
 
मैं बादल बन बनकर छाया 
आँसू से प्यास बुझाई नर की
हृदयों को भेद दिया जिसने
पूजा हमने की उस शर की 
  
मत पूछ हमारी पीड़ा क्या मत पूछ सृजन का क्या उद्देश्य . . . 

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