संवेदना-2

15-02-2023

संवेदना-2

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

संवेदना इस क़द्र मर गई है
कि हम कौओं का मँडराता हुआ झुण्ड देखकर
समझ पाते हैं—
कहीं हादसा हो गया है! 
 
एम्बुलेंस को बस्ती की ओर जाते देखकर
जान पातें हैं—
कोई बहुत बीमार है! 
 
इस संज्ञाशून्य बीमार स्थिति में
एक कविता ही है
जो निकाल सकती है हमारे कानों में जमा खूँट
जिससे की हमें सुनाई पड़ सके
बूढ़ों के खखारने की स्पष्ट आवाज़! 
 
धो सकती है हमारी आँखों में लगा कीचड़
जिससे कि हम देख सकें कि
आसपास के कितने कुएँ सूख चुके हैं! 

 
जो हमें चेता सकती है कि
ज़मीन से ऊपर उठने पर 
ऑक्सीजन का स्तर घटने लगता है! 
 

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