धुआँ

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 221, जनवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

जलती हुई लकड़ियों का
प्रतिरोध है
धुआँ! 
धुआँ एक चीख है
एक प्रकृतिजन्य विद्रोही कविता
जो आँखों में बहुत कसकती है! 

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