संकुचन

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं पृथ्वी से भारी हूँ 
मेरी खाट आकाश की तुलना में नगण्य 
मेरे सपनों को हवा उछाल रही है 
बॉलीबाल की तरह 
मैं मूढ़! नेट सा बँधा हूँ 
जब तक अपनी जड़ता त्यागता हूँ 
गेंद दूसरी ओर जा चुकी होती है 
पंखे के पिछले पर की तरह मैं घूम रहा हूँ लगातार 
आगे वाले पर को पकड़ लेने की असमर्थ चेष्टा करता! 

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