मुक्ति 

01-09-2025

मुक्ति 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 283, सितम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैं हर उस जगह जाना चाहूँगा 
जहाँ से लौटकर नहीं आऊँगा 
अपने अधूरेपन को तमाम अधूरेपनों में तोड़ूँगा 
फिर उन प्रत्येक जगह से जोड़ूँगा 
पर क्या अधूरेपनों के बराबर संख्या में जगहें 
पा सकूँगा? 
या हर अधूरेपन को टूटने के बाद अलग-अलग पहचान सकूँगा? 
क्या एक ही संयोजन पर्याप्त न होगा? 
क्या वही एक संयोजन ढूँढ़ना मुक्ति है! 

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