साफ़ सुथरे कमरे! 

01-10-2022

साफ़ सुथरे कमरे! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

साफ़ सुथरे लगने वाले कमरों में भी
होता है जाला
हालाँकि वो हमें दिखाई नहीं देता
वो बड़े सलीक़े से छिपा रहता है
काँच के दरवाज़ों के पीछे
गोल मेज़ की दरारों के बीच में
अँधेरे कोने में
जहाँ से ख़ाली हाथ लौट आती है
कवि की कल्पना तक 
बुद्धजीवियों के दिमाग़ का गुरुत्वाकर्षण भी
खींच नहीं पाता उन्हें
अपनी आँखों की पुतलियों तक
उस पर कभी नज़र नहीं जाती
या जाना नहीं चाहती 
डॉ. साइमन की
और वो कभी दर्ज नहीं हो पाता 
साइमन कमीशन की रिपोर्ट में . . . 

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