भोर अकेला साँझ अकेली

15-05-2022

भोर अकेला साँझ अकेली

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

भोर अकेला साँझ अकेली मन है निरा अकेला . . .
 
सूरज डूबा धीरे-धीरे, 
रजनी लौटी उर के तीरे, 
शिथिल हुआ रे आह्लादित मन, 
बरस चुका रे सावन का घन, 
 
टूट गया प्रिय-छवि का दर्पण, गई मिलन की वेला, 
भोर अकेला साँझ अकेली मन है निरा अकेला . . .
 
टूटे तार हृदय-वीणा के, 
बुझे गीत जीवन क्रीड़ा के, 
मिली कल्पना सच्चाई से, 
फूटे स्वर कितनी पीड़ा के! 
 
पीर घुली हर एक दिशा, क्या ख़ूब विधाता खेला! 
भोर अकेला साँझ अकेली मन है निरा अकेला . . .
 
लौटो हे प्रिय! अश्रु बुलाते, 
कंपित कंठ मधुर स्वर गाते, 
पूरी निशि इस आस दीप से, 
तम के गण संग्राम मचाते, 
 
रजनी डूबे, सूरज लौटे, खिले कमल अलबेला, 
भोर अकेला साँझ अकेली मन है निरा अकेला . . .

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