प्रबल झंझावात है . . . 

15-05-2022

प्रबल झंझावात है . . . 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

डालियों से भिन्न होकर, 
धूल-धूसरित, छिन्न होकर, 
तत्व, जीवन-प्राण खोकर, 
रो रहा लघु पात है, 
प्रबल झंझावात है . . . 
 
नीड़ से जो सोच निकला, 
आज नभ को मापना है, 
और जलनिधि - वक्ष पर, 
अपनी छवि को झाँकना है, 
तीव्र गति से वह पवन की
बिंध गया खग-गात है, 
प्रबल झंझावात है . . . 
 
आ आँधियाँ लेतीं परीक्षा, 
कर रहीं मेरी समीक्षा, 
पाँव पीछे खींचती हैं, 
नयन बरबस मींचती हैं, 
इस दिवा के अंध ने, 
ली निगल आशा पथिक की, 
कितनी अँधेरी रात है! 
प्रबल झंझावात है . . .॥

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