कहीं देर न हो जाए! 

15-09-2022

कहीं देर न हो जाए! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

गन्दे नालों से, 
सड़े हुए छप्परों से, 
कीड़े मकोड़े लौट रहे हैं
रोशनी की तरफ़
लाँघते हुए इमारतों की दीवारों को
भेदते हुए रोशनदानों और खिड़कियों के छेदों को, 
छिपकलियों के डर को ताक़ पर रखते हुए, 
क्यों न उनके हिस्से की रोशनी आप उन्हें दे दें
कहीं देर न हो जाये! 

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