मुकुट धरो हिंदी के सर पर . . . 

01-06-2022

मुकुट धरो हिंदी के सर पर . . . 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मुकुट धरो हिंदी के सर पर, 
लौटो भिक्षु स्वयं के दर पर॥
 
छोड़ दासता की परछाईं, 
सब मिल बोलो हिंदी भाई, 
अपनापन है अपने घर पर, 
मुकुट धरो हिंदी के सर पर॥
 
चाहे उधार के शब्द सजाओ, 
कंठ खोलकर या चिल्लाओ, 
पर, संगीत झरेगा अपने स्वर पर॥
मुकुट धरो हिंदी के सर पर॥
 
कवियों ने इसमें आशा बोई, 
सबकी बन यह पीड़ा रोई, 
भाव-बाँसुरी धरे अधर पर॥
मुकुट धरो हिंदी के सर पर . . .
 
मुखर वाहिका यह संस्कृति की, 
अभिव्यक्ति बनी नूतन भारत की, 
मिलकर पहुँचाओ इसे शिखर पर, 
मुकुट धरो हिंदी के सर पर, 
लौटो भिक्षु स्वयं के दर पर॥

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