कामना! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ईश मेरी कामना मैं नीरवों का स्वर बनूँ, 
अमर होना चाहते सब किन्तु मैं नश्वर बनूँ, 
देवताओं के बुतों पर रात दिन पहरा न दूँ, 
निर्धनों के शून्य पथ का एक अदना चर बनूँ, 
 
एक छोटी रश्मि बनकर इस तिमिर को चीर डालूँ, 
पंक्तियों में मूक, जर्जर झुग्गियों की पीर डालूँ, 
तेल बन जाऊँ दिए का जो सतत जलता रहे, 
अन्न बन जाऊँ जिसे खा भिक्षु भी पलता रहे, 
 
नीर बन जाऊँ नदी का प्यास कंठों की हरूँ, 
राधिकाओं के नयन से प्रेमपूरित हो झरूँ, 
भारती की गोद में पलता रहूँ, खिलता रहूँ, 
दुश्मनों से भी अति कोमल हृदय मिलता रहूँ॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में