तुम्हारे शून्य में! 

15-03-2023

तुम्हारे शून्य में! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

इस बात से ही मैं सुखी हूँ कि
तुम्हारे शून्य में कुछ शून्य मेरा भी निहित है
वाक्य में क्या रिक्तता है? 
यह न मुझको ही विदित है! 
यह न तुझको ही विदित है! 
चाँद तो कल का वही है
तेज सूरज का वही है
गान चिड़ियों के वही हैं
अर्थ शब्दों के वही हैं 
विगत का सब हस्तगत है, 
फिर भला क्यों मन व्यथित है! 
वाक्य में क्या . . .

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में