ओ टिमटिमाते दीप!

15-06-2022

ओ टिमटिमाते दीप!

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ओ टिमटिमाते दीप मेरी आस के आख़िरी प्रहरी, 
बुझना नहीं तुम भले कितनी हवा ले साँस गहरी, 
 
एक तेरे ही सहारे मैं यहाँ तक आ गया हूँ, 
एक तेरी नाव ले लगभग किनारे पा गया हूँ, 
एक तुझसे नेत्र लेकर देहरी को तक रहा हूँ, 
घोर तम में एक छोटी लाल रेखा लख रहा हूँ, 
 
उठाते रहो हिल्लोल प्राणों में मेरे संगीत-लहरी! 
ओ टिमटिमाते दीप मेरी आस के आख़िरी प्रहरी, 
बुझना नहीं तुम भले कितनी हवा ले साँस गहरी॥
 
एक तुम्हारा नाम लेकर कंठ को अब तक छला है, 
एक तुम्हारे स्नेह से बिन तेल के दीपक जला है 
एक तुम्हारी डाल पर यह नीड़ तिनकों का टिका है, 
तन थका लड़कर समर पर न मन अब तक थका है, 
 
भरते रहो पद में पथिक के नव-गति नव-ताल ठुमरी, 
ओ टिमटिमाते दीप मेरी आस के आख़िरी प्रहरी, 
बुझना नहीं तुम भले कितनी हवा ले साँस गहरी . . . 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में