मैं ज़मीन पर हूँ

01-07-2022

मैं ज़मीन पर हूँ

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मैं कल्पना का गिरेबान पकड़कर
उसे ज़मीन पर खींच लाता हूँ
मेरे शब्दों में मर्यादा नहीं है
हो भी नहीं सकती! 
मैं सच के तन से सारे कपड़े उतार देता हूँ
एकदम नंगा पेश कर देता हूँ
मैं अलंकारों के छल से न ख़ुद को छल पाता हूँ 
न आपको
मेरे छन्दों में आप कसावट मत ढूँढ़िये
बहर मत खोजिये
निराश होंगे
मैं उस स्थिति में लिख रहा हूँ
जहाँ बहर से अनंत गुना महत्त्वपूर्ण है
बहरों को सुनाना! 
क्षमा करना! 
यह कविता यहीं रोकनी पड़ेगी
कहीं ऐसा न हो
क्रोध के असहाय हाथ
दुर्बलों के अंतिम अस्त्र गाली तक पहुँच जाएँ! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में