हत्याओं के दौरान 

01-12-2025

हत्याओं के दौरान 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 289, दिसंबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

सुरक्षा से प्रेरित होकर 
मूत्राशय से पेशाब की अंतिम बूँद 
छलक जाने का इंतज़ार कर रहा हूँ 
पत्नी प्रेमिका जैसी लगने लगी है 
तटस्थता सहवास के पहले निरोध लाने गयी है
मार्क्स को गंधर्वों के गान सुनाई पड़ने लगे हैं 
और मैं 
नहाने को देर तक स्थगित करने के लिए 
रात की गीली चड्ढी गैस की धीमी आँच में सुखवा रहा हूँ 
और किसी अपच कविता को पचा डालने के लिए 
पचवाला ला रहा हूँ 
शोंधीहर्र खा रहा हूँ! 

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