हारों की शृंखला

15-06-2023

हारों की शृंखला

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 231, जून द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


यहाँ से केवल शिखर दिखते हैं
मुँद जाती हैं वो घाटियाँ
जहाँ पर दबे हुए हैं
शिखर तक पहुँचने के न जाने कितने प्रयास! 
 
देखो हमारे तलुओं की घिसन
हमारी अंगुलियों के बीच में हो गए खरवों को
ज़रा ग़ौर से देखो
हमारे तलुवे चोटी पर गड़े झंडे से भी ज़्यादा लाल हैं! 
 
बूढ़े कँपकँपाते हाथों से छोटी सी सूई में तागा डालने जैसी
किसी नए नवेले किशोर के साइकिल पर संतुलन बनाने जैसी
किसी कालजई कविता की रचना प्रक्रिया जैसी
सफलता, असफलताओं का एक वृहत कोश है! 
 
ज़रा ग़ौर से देखो
कोलम्बस के मुकुट पर जड़ा हुआ सबसे चमकदार हीरा! 
ये वो नाविक है
जिसने बहुत पहले सुमुद्री यात्रा की पहल की थी
अपनी पत्नी बच्चों से दूर गया था
पर कभी नहीं लौटा! 
 
मैंने सुना है
पूछा था झाँसी की रानी ने एक साधु से
संघर्ष का परिणाम क्या होगा? 
उसने कहा था
अभी नींव नहीं भरी
उसी असफल नींव पर खड़ी हुई—
47 की तिमंज़िला इमारत॥

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