सजा हुआ जंगल

01-10-2022

सजा हुआ जंगल

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

हम दरवाज़े के सामने की बढ़ी हुई घास
और ज़बरदस्ती उगा हुआ खरपतवार
नहीं चरने देते किसी पशु को 
हाँक देते हैं उसे 
हालाँकि वो भी तो गंदगी साफ़ कर रहा है
पर हमारा अपना तरीक़ा है साफ़-सफ़ाई का 
वैसे हम सफ़ाई चाहते ही नहीं 
बल्कि चाहते हैं मशीन से ट्रिम किया हुआ 
एक सजा हुआ जंगल! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में