निराशा – 2

15-11-2025

निराशा – 2

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

सर्दी आ रही है 
अपना कुहासा लिए 
अपनी लम्बी रातें लिए 
अपना ठंडा सूरज लिए 
गर्मी फिर से चली गयी है
हमारे पसीने को अन-उगा छोड़कर! 
और बरसात? 
बरसात तो एक सन्धि सी है 
स्पष्टता और धुँधलेपन के बीच 
एक आँसू सी! 
उसका अथाह जल 
छोटी सी वसंत को सींचने में ही चुक जाता है

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