कविता और जीविका: दो विचार

01-05-2023

कविता और जीविका: दो विचार

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 228, मई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)


कविता और जीविका-1
 
मुझे ये जानने में बहुत समय लगा
कि कविता करने के लिए
और भी कुछ करना पड़ता है! 
मैं तुम्हारी सेवा में इतना तल्लीन हो गया
और यह भूल ही गया कि
मेरे मुँह में दाँत भी हैं! 
जो केवल दन्तव्य वर्णों का उच्चारण ही नहीं करते
वरन् भोजन को चबाते भी हैं! 
 
कविता और जीविका-2
 
जब सड़क की सारी सम्भावनाओं से
निराश हो जाऊँगा
जब रीढ़ की हड्डी मुड़-मुड़ कर टूट जाएगी 
जब सूर्य की अंतिम किरण को भी अवलम्ब न बना सकूँगा 
केवल तब लौटकर आऊँगा 
एक याचक की तरह 
माँ! तुम्हारे पास
माँगूँगा भोजन
दो घूँट पानी
उन सारे उत्तरों के उत्तर
जो अब फिर प्रश्न बन गए हैं! 
बेचूँगा कविता! 

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