शिव तांडव: एक नए कोण से 

15-09-2025

शिव तांडव: एक नए कोण से 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

अस्त-व्यस्त बाल 
नेत्र लाल-लाल 
भीति डाल-डाल 
आ रहा है काल . . . 
 
सिंहासनों का हो मरण 
मूक-बधिरों का क्षरण 
पर्वतों की पीर को 
नदी रही उबाल . . . 
 
हरेक स्वप्न बोलता 
हर दिशा नवीन है 
हरेक ठूठ हँस रहा 
हरेक अस्त्र दीन है . . . 
 
राग है विराग है 
कि हर तरफ़ आग है 
ले दिशा सँभाल
चढ़ रहा सुहाग है . . . 
 
हर तरफ़ पंथ है
तन गयी मचान है 
काँव-काँव पिहू-पिहू
कि खुल गयी उड़ान है . . . 
 
हर परिधि को भेदता
चल पड़ा त्रिशूल है 
हर धुएँ से कह रहा 
कि आग उसका मूल है . . . 
 
लपक रही हैं कोटि जीभ
डर रहा त्रिकूट है
मौन स्वर्ण-क्षेत्र है
कि खुल रहा त्रिनेत्र है . . . 
 
बढ़ रहे चरण प्रभु के 
मुँद रहा समुद्र है 
राम-लक्ष्मण हनू-अंगद
हर कोई रुद्र है . . . 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
स्मृति लेख
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में