मेरे पिताजी!

01-01-2022

मेरे पिताजी!

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 196, जनवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

क्या बताऊँ पिता मेरे, 
जागते कितने सबेरे, 
 
ख़ूब डटकर काम करते, 
न तनिक आराम करते, 
 
पंथ में वे पग बढ़ाते, 
फूल हों या लाख काँटे, 
 
बाल उनके श्वेत-काले, 
सैकड़ों अनुभव सँभाले, 
 
दुखी उनका विधुर जीवन, 
और चिंता से सना मन, 
 
पर कष्ट में वे और निखरे, 
टूट जब अधिकांश बिखरे, 
 
लू-थपेड़े-धूप सहते, 
कभी मुख से उफ़ न कहते, 
 
अनुभव कभी अपने बताते, 
सीख जीवन की सिखाते, 
 
मुश्किलों में जब पड़ो, 
आखिरी दम तक लड़ो, 
 
वे नहीं केवल हैं कहते, 
शब्द का न जाल गहते, 
 
वे सदा करके दिखाते, 
तब कहीं मुझको सिखाते, 
 
ताप इतना सहन करके, 
बोझ इतना वहन करके, 
 
आप ख़ुद हँसते-हँसाते, 
किस तरह साहस जुटाते! 

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