सूरज का छल

01-07-2022

सूरज का छल

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अभी वह पूरब दिशा से निकलेगा
लगेगा मानो निगल जायेगा
सारे अंधकार को
हल्का सा गुनगुना स्पर्श देगा त्वचा को
और आदमी रोमांचित हो उठेगा
कवि गा उठेगा
पर धीरे धीरे
वह बदल जायेगा आग के गोले में
पी जायेगा तालाबों को
कल कल करती नदियों को
किसानों के पसीने में देखेगा
वह अपनी क्रूरता की छवि! 
और ठहाके लगाकर हँसेगा 
पर समय के बंधन से जब होगा पराजित
वह फिर से धर जायेगा किन्ही होंठों पर मुस्कान! 
थपथपायेगा किसी झोपड़ी की पीठ! 
और विलुप्त हो जायेगा
छोड़कर
हमारी स्मृति में अपनी कोई छायादार तस्वीर! 
सुबह 
हम लोग अपनी रोटी की गर्मी दे देकर
फिर से जलायेंगे उसे
और वह फिर से छल करेगा! 

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