आ रही गहरी निशा है

15-02-2022

आ रही गहरी निशा है

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 199, फरवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

आ रहे हैं रोग तन पर, 
छा रहा शैथिल्य मन पर, 
 
अस्तगामी हो चला है, 
सूर्य आतप खो चला है, 
 
आ रही गहरी निशा है, 
बद्ध होती हर दिशा है, 
 
जो हृदय में था उजाला, 
वह तिमिर ने रौँद डाला, 
 
बलवती होती निराशा, 
हारती है हाय आशा! 

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