मैंने ख़ुद का निर्माण किया है

01-06-2022

मैंने ख़ुद का निर्माण किया है

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 206, जून प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

नीर मिला न विरासत में, 
तूफानों में स्वयं सहारे, 
हर बार बाद पतझरों के
सूखे तन को नव प्राण दिया है, 
मैंने ख़ुद का निर्माण किया है॥
 
कंटक-हीन लीक से हटकर, 
चला स्वयं के निर्मित रथ पर, 
मैंने मर-मरकर बार-बार
कितनों को ही निर्वाण दिया है, 
मैंने ख़ुद का निर्माण किया है॥
 
देख न पाता मैं गालों में
हासों की उन्मुक्त रेख, 
हाँ! चिंतित हूँ मैं अन्धकार
में कोई भी न किरण देख, 
मैंने चुन-चुनकर आँसू को
शब्दों का परिमाण दिया है, 
मैंने ख़ुद का निर्माण किया है॥ 

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