तेरी याद नहीं आई! 

15-05-2024

तेरी याद नहीं आई! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 253, मई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

पूरा बचपन बीत गया है बीत रही तरुणाई, 
फिर भी इस मूर्ख को भोले तेरी याद नहीं आई . . . 
 
बहे नयन से आँसू केवल छोड़ प्रिया के जाने पर, 
अट्टहास बहुतेरे हो गए कुछ अभीष्ट मिल जाने पर, 
सुख ने कितनी बार बुलाया लालच दे अपने ठिकाने पर, 
समझ न पाया लेकिन फिर भी बार-बार छला जाने पर, 
 
कितनी बार यकायक गुज़री किरण पड़ी मुझको भी दिखाई, 
फिर भी इस मूर्ख को भोले . . .
 
हर बार स्वप्न के खंडहरों पर एक नया निर्माण किया, 
प्रबल निराशा का हरदम आशा से प्रतिकार किया, 
चौराहों पर भटक भटककर प्रिय के गृह का शोध किया, 
मैंने भी यह जीवन धिक् किसके-किसके हेतु जिया, 
 
विक्षिप्त दशा में उसी पंथ में तेरी मूरत दी थी दिखाई, 
फिर भी इस मूर्ख को भोले . . .
 
कितनी बार जुगनुओं से मैंने प्रकाश की भिक्षा माँगी, 
कितनी बार भ्रमर बन कली से मिलने की इच्छा जागी, 
कितनी बार काव्य के धनु पर प्रणय-छंद संधान किया, 
तेल फूँककर आत्मा का व्यर्थ जलाया देह-दिया, 
 
कभी-कभी कोई पंक्ति बन तुमने आवाज़ लगाई, 
फिर भी इस मूर्ख को भोले . . . 

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