आत्मस्वीकार

01-02-2022

आत्मस्वीकार

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

क्या कहा उसे जो कहना था, 
अनकहा रहा, जो कहना था, 
नाहक़ तूँ ताली पीट रहा, 
वह कोसों पीछे छूट गया, 
जिसको मुट्ठी में गहना था . . .
 
मैं कवि हूँ, मेरी मर्यादा है, 
यह लिखा पत्र तो सादा है, 
बुद्धि भला हृदयों का दुःख
किस सीमा तक कह सकती है, 
क्या कहीं क़लम की स्याही भी, 
अश्रु बनकर बह सकती है? 
 
पर कवि होने का अहंकार, 
असमर्थता पर करता प्रहार, 
अनकहा लिखूँ इस कोशिश में, 
रंगता काग़ज़ मैं बार-बार, 
बना लेखनी को पतवार, 
बुद्धि-नाव पर हो सवार, 
चला थाहने हृदय-सिंधु को, 
जिसका कहीं आर न पार॥

1 टिप्पणियाँ

  • 31 Jan, 2022 02:04 PM

    वाह, बहुत सुन्दर

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