युगपुरुष

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

हर तीसरा आदमी युगपुरुष है। सोचता हूँ जिस युग में इतने सारे युगपुरुष हैं वो युग न हुआ, वेश्या हो गयी! अब युग के पुरुष नहीं होते, पुरुषों के युग होते हैं! हर आदमी इसी जद्दोजेहद में लगा हुआ है कि कैसे भी अपना एक पृथक युग ले आए! साहित्य सम्मेलन हो रहा तो बड़ा, छोटे से कहता है पहले तुम सब मुझे युगकवि मान लो फिर आगे मैं तुम्हारी राह आसान करता हूँ! प्रशस्ति पत्र में लिखवाया जाता है:

“मैं ही वसंत का अग्रदूत 
हिंदी का सबसे बड़ा पूत 
मेरे ही ऊपर लदे हुए 
ये छोटे-छोटे कवि-कपूत”

इधर, सांसद परेशान है कि कैसे भी करके प्रधानमंत्री जी को युगपुरुष घोषित कराया जाय ताकि पीछे से विधायक मुझे युगपुरुष घोषित करें! 

विपक्षी दल फ़िराक़ में है कि किसी जकनिक से अपना आल्हा लिखवा लेकर ख़ुद को जन वाणी कहलवा लें! सब अपनी-अपनी महिलाएँ ढूँढ़ रहे हैं कि किसी तरह वो युगपुरुष बन जाएँ! लिंगानुपात घट रहा है और लोग बड़ी शिद्दत से इस काम में लगे हैं, मुझ पौरुषहीन अकेले का अंत में क्या होगा! 

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