भिन्न हैं स्वर हमारे तुम्हारे स्वरों से 

15-10-2025

भिन्न हैं स्वर हमारे तुम्हारे स्वरों से 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

भिन्न हैं स्वर हमारे तुम्हारे स्वरों से 
श्रेष्ठ हैं श्राप मेरे तुम्हारे वरों से 
यदि तुम्हारे सुरों से झरें पुष्प झूठे 
तो महत शून्य मेरा शत अक्षरों से॥
 
मैं तुम्हारा सदा ही विरोधी रहूँगा
कला की नियत का शोधी रहूँगा
चाहे मलें मेघ तन पर कुछ छाया
मैं उनका सदा मार्ग-रोधी रहूँगा॥
 
निशा के ही सहचर सारे ये तारे
इनसे हमारी कभी न पटेगी
लड़ता हुआ दीप है इष्ट मेरा 
भक्ति मेरी दो पर कभी न बँटेगी॥
 
क्या प्रेम का मूल्य जयमाल तक है? 
अभी युद्ध अपना बहुत काल तक है 
झुके भाल पर बस सोने की छतरी
कटे भाल से तो क्षितिज लाल तक है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
स्मृति लेख
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
कविता - हाइकु
कहानी
बाल साहित्य कविता
किशोर साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में