फिर तुम्हारी याद आई

15-10-2022

फिर तुम्हारी याद आई

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

बंद मन की खिड़कियों से झाँकती है पीर कोई, 
तेज़ वायु की थपकियों से जगी फिर नदी सोई, 
सब मकड़जाले अचानक हट गए तस्वीर से, 
मुक्त होकर जी उठे क्षण मौन की ज़ंजीर से, 
एक नाज़ुक हँसी उभरी द्वार गलियों व घरों में, 
एक कंगन वेग भरता लाज के बंदी स्वरों में, 
बन गया पुल परिवहन को मुँद गई गंभीर खाई, 
फिर तुम्हारी याद आई . . . 

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