रात के घुप अँधेरे में

01-10-2022

रात के घुप अँधेरे में

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

रात के घुप अँधेरे में
पेड़ डर जाते हैं अपनी ही
पत्तियों की खरखराहट से
 
रात के घुप अँधेरे में
छतों को ग़ैर लगने लगती हैं
दीवारें
 
रात के घुप अँधेरे में
आशा की आँख ओढ़ने 
लगती है नींद की चादर
धीरे-धीरे-धीरे 
 
रात के घुप अँधेरे में
भटकती रहती है मेरी कविता
गली दर गली
किसी को आवाज़ देती हुई . . . 

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