नया कवि! 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ख़ूब गोते लगाए आज समुद्र में, 
पर न मिला एक भी मोती, 
न फूटा हृदय में कोई उद्गार, 
जिसका कि कर सकूँ विस्तार, 
हाँ! जूठी उपमाएँ, तुकांत ज़रूर मिले, 
तो! इनसे भी तो बोल सकती है तूती! 
पर तुकबंदी कविता नहीं है, 
जी नहीं! यहाँ वो कविता है, 
जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि
और कवि हर जगह पहुँच चुके हैं
हर जगह! 
 
तो भाई नया कवि जाये कहाँ? 
हर कोलम्बस अपने अमेरिका का
कॉपीराइट लिए बैठा है
हर वास्कोडिगामा चिल्ला रहा है—
भारत को मैंने खोजा है
हाँ बात तो तुम्हारी सही है! पर—
भाई अभी भी कुछ द्वीप बचे हैं, 
अभी भी बहुत चोटियाँ हैं जीतने को, 
पर मेहनत करनी पड़ेगी! 
अपनी लीक ख़ुद गढ़नी पड़ेगी! 
वैसे सस्ते में निपट जाओगे, 
अगर बने बनाये रास्तों में चलोगे, 
ख्याति वग़ैरह सब मिल जाएगी, 
बस शब्दों में थोड़ा हेर फेर ही तो करना है, 
और तो और अब ब्लैक आउट पोएट्री भी
आ गयी है मार्केट में, 
एकदम वैधानिक रूप लिए हुए॥

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