विरोधाभास 

15-11-2025

विरोधाभास 

अभिषेक पाण्डेय (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

कैसा विरोधाभास है 
जिन तंग गलियों से 
एक आदमी नहीं गुज़र सकता 
उनसे गुज़र रहा है एक जानवर 
बेखटके 
नाखूनों को खरोंच से बचाते हुए 
सींगों को आकाश की छाती में धँसाते हुए 
खुरों से धरती का गर्भ कुचलते हुए
पूँछ हिलाकर निष्ठा दिखाते अँधेरे के प्रति
और नथुने फुलाकर अपने जानवर होने पर दम्भ करता। 

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