चराग़े-दिल

छू गई मुझको ये हवा जैसे
फूल के होंठ ने छुआ जैसे।

कोई शोला लपक गया जैसे
दिल में मेरे धुआँ उठा जैसे।

यूँ हवा ले उड़ी मेरा दामन
कोई मुझसे अलग हुआ जैसे।

मैं भरे से जहां में तन्हा थी
उन सितारों में चाँद था जैसे।

उस तरह मैं कभी न जी पाई
ज़िंदगी ने मुझे जिया जैसे।

हल न कर पाई ‘देवी’ दुशवारी
ले गया कोई हौसला जैसे।

<< पीछे : वफ़ाओं पे मेरी जफ़ा छा गई आगे : किस से बचाऊँ अपना घर >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो