चराग़े-दिल

बेसबब बेरुख़ी भी होती है
प्यार में बेकसी भी होती है।

आओ तन्हाई में करें बातें
राज़दां खामुशी भी होती है।

खिल न पाए बहार में भी जो
एक ऐसी कली भी होती है।

रुख़ पे जो आँसुओं को छलका दे
ग़म नहीं, वो खुशी भी होती है।

दुनियाँ जिस बात को ग़लत समझे
दरहक़ीकत सही भी होती है।

मौत से भी कहें जिसे बदतर
एक यूँ ज़िंदगी भी होती है।

घौंप दे पीठ में छुरी हँस कर
इस तरह दोस्ती भी होती है।

और बढ़ती है जो बुझाने से
ऐसी इक तिशनगी भी होती है।

बेदिली से करे अगर ‘देवी’
बेअसर बंदगी भी होती है।

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