चराग़े-दिल

ठहराव ज़िंदगी में दुबारा नहीं मिला
जिसकी तलाश थी वो किनारा नहीं मिला।

वर्ना उतारते न समंदर में कश्तियाँ
तूफान आया जब भी इशारा नहीं मिला।

हम ने तो खुद को आप सँभाला है आज तक
अच्छा हुआ किसी का सहारा नहीं मिला।

बदनामियाँ घरों में दबे पाँव आईं
शोहरत को घर कभी भी, हमारा नहीं मिला।

ख़ुशबू, हवा और धूप की परछाइयाँ मिलीं
रौशन करे जो शाम, सितारा नहीं मिला।

खामोशियाँ भी दर्द से ‘देवी’ पुकारतीं
हम-सा कोई नसीब का मारा नहीं मिला।

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