चराग़े-दिल

बाक़ी न तेरी याद की परछाइयाँ रहीं
बस मेरी ज़िंदगी में ये तन्हाइयाँ रहीं।

डोली तो मेरे ख़्वाब की उठ्ठी नहीं, मगर
यादों में गूँजती हुई शहनाइयाँ रहीं।

बचपन तो छोड़ आए थे, लेकिन हमारे साथ
ता- उम्र खेलती हुई अमराइयाँ रहीं।

चाहत, ख़ुलूस, प्यार के रिश्ते बदल गए
जज़बात में न आज वो गहराइयाँ रहीं।

अच्छे थे जो भी लोग वो बाक़ी नहीं रहे
‘देवी’ जहां में अब कहाँ अच्छाइयाँ रहीं।

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