चराग़े-दिल

जो मुझे मिल न पाया रुलाता रहा
याद के गुलिस्ताँ में वो आता रहा।
 
जिस तरफ़ देखिये आग ही आग है
आँसुओं से उसे मैं बुझाता रहा।
 
हौसले टूटकर सब बिखरने लगे
गीत फिर भी मैं उनको सुनाता रहा।
 
ज़िंदगी हसरतों का दिया है, मगर
आँधियों में वही टिमटिमाता रहा।
 
ये अलग बात थी पत्थरों में बसा
काँच के घर को अपने बचाता रहा।
 
दौर देवी गया जो गुज़र कर अभी
याद बीते दिनों की दिलाता रहा।

<< पीछे : देख कर तिरछी निगाहों से वो मुस्काते… आगे : मेरे वतन की ख़ुशबू >>

लेखक की कृतियाँ

साहित्यिक आलेख
कहानी
अनूदित कहानी
पुस्तक समीक्षा
बात-चीत
ग़ज़ल
अनूदित कविता
पुस्तक चर्चा
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो