चराग़े-दिल

दोस्तों का है अजब ढब, दोस्ती के नाम पर
हो रही है दुश्मनी अब, दोस्ती के नाम पर।

इक दिया मैने जलाया, पर दिया उसने बुझा
सिलसिला कैसा ये यारब, दोस्ती के नाम पर।

दाम बिन होता है सौदा, दिल का दिल के दर्द से
मिल गया है दिल से दिल जब, दोस्ती के नाम पर।

जो दरारें ज़िंदगी डाले, मिटा देती है मौत
होता रहता है यही सब, दोस्ती के नाम पर।

किसकी बातों का भरोसा हम करें ये सोचिए
धोखे ही धोखे मिलें जब, दोस्ती के नाम पर।

कुछ न कहने में ही अपनी ख़ैरियत समझे हैं हम
ख़ामुशी से हैं सजे लब, दोस्ती के नाम पर।

दिल का सौदा दर्द से होता है ‘देवी’ किसलिए
हम समझ पाए न ये ढब, दोस्ती के नाम पर।

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